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________________ १८० अनुसन्धान-७५(२) बाप मरीनइ बेटु थाइ, कुणिहि न कहिनउ पिण्डऊ धराई ॥१५॥ 'करपा-हीण जीव दुखिया हुंति, मनवंछित फल तउ न लहंति । जे लेई पूजई खडसलउं, कहु किम लहिसइं फल ते भलउं ॥१६॥ एकमनां जे अरिहंत ध्याई, ___अंतराहि तहिं दूरिहिं जाई। अरिहंत भणीइ त्रिभवन-राउ, ____ मोह तणउ जिण फेडिउ ठाउ ॥१७॥ केवलज्ञान अनंतुं फिरइ, देसण वाणि अमिअ-रस झिरइ । सयलहं जीवहं जे सम-चित्त, तसु पय वंदउं सदा पवित्त ॥१८॥ चउसठि इंद्र नइ सूरु हु चंद, तसु पय सेवई मुनिवर-वृंद । त्रिहु छत्रिई त्रिहुं भुवणह राउ, सिद्धिसिला ते अविचल ठाउ ॥१९॥ अरिहंत देव सुसाधु गुरु जाणि, जिन-प्रणीत नव तत्त्व वखाणि । रत्न-त्रय जिहिं निश्चल चित्ति, तीहं तणइ करयलि छइ मुगति ॥२०॥ समकितु-रयण दुलंभं होइ, ___ समकित पाख मुगति म जोइ । समकित माय-बाप संसारि, धर्म-मूल समकितु आधारि ॥२१॥ १. कृपा २. अन्तराय
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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