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सप्टेम्बर - २०१८
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रवि जेवडउ नायक आथिमई,
तिहां तु सहूइ जासक जिमइ । रवि-कर पाखइ अपवित्र जलू,
ते सिउं लेसिइं ऊपरि चलू ॥९॥ करसणि जीव मरइं तीहं रुहिरि,
ओलि भराई सांसउ म करि । मारी तां विडलां कण विणइ,
अम्हि बूटउं मूरख भणइं ॥१०॥ सूकां त्रिणां चरई वनवासि,
न करई कहिनउ किसउ विणास । तीह मृग ऊपरि आयधः वहइं,
___ अम्ह रहई विवर्जिउं ए इम कहइं ॥११॥ स्त्री लगइ वाधइ ए संसार,
स्त्रीदानिइं किम सुकृत अपार । कामि रंगि भूला इम भमई,
ब्रह्मचर्यनुं नाम न गमई ॥१२॥ मधु अपवित्र ए नही भ्रंति,
__तिणि पामी पंचामृत पंति । विण अथाणा भावइ नही,
सुरा-समुं ते जग-गुरि कही ॥१३॥ न्हातां अणगल नीर न काणि,
नमइं नागनइ मारइं प्राणि । जीव-योनि ह्वे सघली मरई,
दव दीजई किम पुण्यह वरइ ॥१४॥ आप आपणइ पुण्य नइ पापि,
भमइ जीव जूजूआं इ व्यापि । १. अञ्जलि २. तृण ३. आयुध