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________________ सप्टेम्बर - २०१८ १७९ रवि जेवडउ नायक आथिमई, तिहां तु सहूइ जासक जिमइ । रवि-कर पाखइ अपवित्र जलू, ते सिउं लेसिइं ऊपरि चलू ॥९॥ करसणि जीव मरइं तीहं रुहिरि, ओलि भराई सांसउ म करि । मारी तां विडलां कण विणइ, अम्हि बूटउं मूरख भणइं ॥१०॥ सूकां त्रिणां चरई वनवासि, न करई कहिनउ किसउ विणास । तीह मृग ऊपरि आयधः वहइं, ___ अम्ह रहई विवर्जिउं ए इम कहइं ॥११॥ स्त्री लगइ वाधइ ए संसार, स्त्रीदानिइं किम सुकृत अपार । कामि रंगि भूला इम भमई, ब्रह्मचर्यनुं नाम न गमई ॥१२॥ मधु अपवित्र ए नही भ्रंति, __तिणि पामी पंचामृत पंति । विण अथाणा भावइ नही, सुरा-समुं ते जग-गुरि कही ॥१३॥ न्हातां अणगल नीर न काणि, नमइं नागनइ मारइं प्राणि । जीव-योनि ह्वे सघली मरई, दव दीजई किम पुण्यह वरइ ॥१४॥ आप आपणइ पुण्य नइ पापि, भमइ जीव जूजूआं इ व्यापि । १. अञ्जलि २. तृण ३. आयुध
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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