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सप्टेम्बर
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२०१८
धुर कारी फागुण वच्चे, थलनो कीजे छेह;
वाट जोउं छं तेहनी, ज्यम बपैयो - मेह. [ का-ग-ल]
माथे फूल ने पेट फल, जोगी जेवी जट; राजकुंवर गृह पाठवो, मोती जेवा घट. [ मकाईनो डूंडो ] काया दीठी जीव विण, मुख विण दीठा दंत; अजीव जीवने हर गयो, मोकलयो मोरा कंत. [कांसको]
एक नारी नवरंगी चंगी, राजाने कुल जाय;
पाणी विना तरती दिठी, मोकलज्यो मोरा नाह. [जलेबी] दो नारी अति सामली, पाणी मांहि वसंत;
ते तुमने देखवा, अलजो अतिही करत. [कीकी] प्रथम आंक अटकलो, पछै नभचंद्र गुणावो, तिण गुण संयुत्त, सोइ ख- वेद हणावो, व्योम - बाणसुं भाग, भली विधि सेती दीजै, शेष रहे जे आंक तिके खट निघन करीजे, इतने वरस प्रतिपो सदा, सामंत सी सब सुख लहे, कवि चंद कहै मनमोजसुं, दुसमण सब दूरै रहो. [ ] पवन बंबुले में पड्यो, चल दल भयो जपात, ऊड्यो जात तस गगनमें, कहे कारण कवि पात. [ पवनदूत शिष लख पठत, पत्रिभूपति काज; ग्रीष्मरुत आय देत दुख, आव वेग सुरराज.
]
समस्या
[ ]
श्याममुखी न मार्जारी, द्विजिह्वा न च सर्पिणी । पञ्चभर्त्री न पांचाली, यो जानाति स पण्डितः ॥ [ कलम ]
चन्द्रबिम्बसमाकारं यस्य नामाक्षरत्रयम् ।
पकारादिकारान्तं यो जानाति स पण्डितः ॥ [ पापड ]
वर्तुलं वृन्तसंयुक्तं सक्षीरं पत्रवर्जितम् ।
पतितं न भूमौ याति जानीहि किमिदं फलम् ॥ [वक्षोज]
नानी खाखर
३७०४३५,
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C/o. जैन देरासर जि. कच्छ, गुजरात