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अनुसन्धान-७५(२)
कुटुंब घणेरो राज, लाखां में लेखो, प्रौढी प्रगटमें देखो, म्हारा० रातदिवस रहै राज, उपासरा मांहि, साधां साथे चाल, म्हारा० भरीय सभामें राज, चरण पसारे, नगन-मगन रहै नारी, म्हारा० । होठां-विहूणी राज, दांतां-विहूणी, मुखडा-विहूणी नारी, म्हारा० जेहने जेहडनो (?) राज, सिर-पांव सोहै, कटिं दल झीणी मन मोहै, म्हारा० उणने तो नहीं राज, सासू ने ससरो, देवर-जेठ नहीं दूसरो, म्हारा० नहीं रे परणी राज, नहीं रे कूआरी, एहवी कुण छे नारी, म्हारा० हरख धरीने राज, कही रे हरीयाली, अरथ कहो नहींतर देसुंगाली, म्हारा०
[ओघा - चरवळानी दांडी]
गूढा – एक घटै एक नीत वधै, घट-वध होवै अकाज;
ना घटै एक ना वध, करो अरथ कविराज. उत्तर : आय घटै, त्रस्ना वध, घटै-वधै मन हमेश;
प्रारब्ध घट-वध न पुरुषकी, सुण हो नृप सुरतेश. अंब फले बहु पत्त करी, महु-ले पत्त खोय; ता पत्तको पानी पीये, तामें का मति होय. [महुडा] एक पुरुष प्रसिद्ध चरण, विण परदेशे हले, मूंह विना ते खाय, शस्त्र विना परदल दले; अग्नि मुख ऊपनो, रातदिवस फिरतो रहे, कवि गंग कहे सुण रायहरी, अरथ कोई विरलो लहे. []