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सप्टेम्बर
२०१८
(८)
राग : असाउरी
पु० १
पुरुष नपुंसक नामि निसुण्यु, पंडित कहु कुण कहीइ रे, अरथ ऊकेली आपु एहनु, नहीतरि गर्व न वहीइ रे, नयन-नाक- दंत-मुख न केसह, हाथ-हीउ काय पाखइ रे, अकल सरूप कहिउ नवि जाइ, खट नारी रस चाखइ रे, ठामि ठामि भमतु नवि भाजइ, रहई लिखमी घरि वासु रे, पभणइ प्रीतिविमल भाई पंडित, एहनउ अरथ विमासु रे, (गणेश रंगसुंदर लिखितं श्रा. कान्हबाई पठनार्थं ।)
पु० २
पु० ३
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( ९ )
एक पुरुष छइ सहजिरं सुंदर, वर्णइं श्वेत कहाइ; नारि मनोहर साथ लीधी, कइयइ विरहउ न थाइ, १
विदुर विचारज्यो हो, एहनउ अरथ कहउ लहि लाव; अडसठि छोरू तेहना हूआ,
अर्द्ध न भेटी माव, विदुर०
नर-नारीसउं छेहडा बांध्या,
कहियइं बाल कुंआरि;
तिणि नारी ते पुरुष न दीठउ,
पुरिषि न दीठी नारी, विदुर० ए बेवइ ब्रह्मा नीपाया, जोवउ जगनी रीत, तेहनइ बेहइ ब्रह्मा जायउ,
बेटी मधि गावइ गीत, विदुर०
जि नर-नारी एहनइ वंचई,
ते पामहं शिवराज; वरस पंच की अवधि कही छइ, अथवा कहिज्यो आज, विदुर०
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