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________________ १६६ अनुसन्धान-७५ (२) बाप हणंता बेटी जाई, जातई निरमल ते नीपाई; कहु० २ वड-वडाऊआ सुं संग करती, बापि नीपाई जनदुख हरती, कहु० ३ पाणिग्रहण करइ जव नारी, रूपहीण तब थाई बिचारी, कहु० ४ कवि कहइ ये एहना गुण जाणइ, लाज मूंकी तेहनइं घरि आणइ; कहु०५ [ ( ६ ) एक पुरुष छइ रूअडउ, सखी चिहुं नारी वरिउ रे, वरीउ नइ परवरीउ चिहुं पुत्रसुं ए; एक पाहि बीजु बिमणु सखी डुटउ रे, डुटउ नि लहुटउ सविहूं आगलू ए. १ दूरि देशांतर ऊपनु पूरवई काया तेहनी मोटी रे, मोटी नइ खोटी वात नवि उच्चरइ ए. २ वदनविहृणु कुंअर मुखि बोलइ, पायविहणु पंथ चालइ रे; चालइ नई हालइ परनारी मिल्यु ए; ३ लावण्यसमय कहि हीआलडी, सखी ये नरवर कहस्यइ रे; कहस्यइ नई लहस्यइ लील ते घणी ए. ४ (७) इक नान्हडली कामिनी, तसु नाह छइ मोटउ; कामिनी कहि तितिम करइ, मनमां नहीं खोटउ; परघरमांहि कामिनी, खात्र देवा पइठी; [ तु दीठी निज नाहलइ, तु भीमांहि पइठी; इक० ते पापणी नासि गई, निज नाह बंधाई; वली कीधु बीजु नाहलु, तुहि लाज न आई, इक० ३ धनहर्ष पंडित इम कहइ, कहु ते कुण नारी; अरथ विचारी ये कहइ, तेहनी मति सारी; इक० ४ ] ] [ ]
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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