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________________ सप्टेम्बर - २०१८ ऋषि हापराज इम वीनवइ रे, ए गूढारथ गीत, साधु तेय सूध सदा रे, अवर न बइसइ चीति गुणि० ७ (सागरचन्द्रसूरि ज्ञानभण्डार, पार्श्व ग. सं., खम्भात, पो. ७२/ प्र. ११२९) [ 1 ( ३ ) जण - जण सउं पाणिग्रहण करती, निरती जे जगि दीसइ रे; बेटी षट बेटी तिणि जाई, सील प्रमाणि सई रे, १ कहि न विदुर नर एह कुण नारी, चाचरि चुहटइ जाई रे; पवण पउहर उरवणि धरती, निरउती ते जगि दीसई रे, २ चलणविहूणी दोइ कर चालइ, बिहुं पक्षि पूरी सोहइ रे; एइ हीयाली जोउ रे निहाली, हाली हेलां जाणइ रे, ३ ए न कह्या विण मूरख पंडित, मुहियां मनि गर्व आणइ रे.... [ १६५ (५) राग : असाउरी (8) रुधिर विना जे मांस कहीजइ, पंखी प्राणह पाखइ, सात-पंच जउ एकठ थायइ, तउ सरव अपूछउ भाखइ रे १ एह हीयाली अर्थ ज आवइ, तेह मांहि च्यार विशेषइ रे, दान - शील- तप-भावना नइ, धर्मवंत धर्म देखइ रे एह० २ सीतल-उष्ण तणी संति छइ, चरण विहूणउ चालइ रे, . ऊजल-कृष्ण व[र]ण सोभइ, अढी द्वीप मांहि माल्हइ रे एह० ३ श्रीपासचंदसूरीसर पय नमी, विजयदेवसूरि भाखइ रे; त्रीस दिवस लगी अरथ विमासी, पंडित विणु कुण दाखइ रे एह० ४ [ ] कहु पंडित कुण नारी कहीइ, गामि गामि ते प्राहीइ लहीइ; कहु० निरमल जलि ऊपन्नी नारी, जनमकालि हुइ अति सारी कहु० १ ]
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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