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सप्टेम्बर
उत्तम गुरुपद रूप अनोपम, कीर्तिविजय जीव ध्यायो ।
तास शिष गणि केसरविजयें, ए अधिकार बनायो रे भ० ||७||
अथ कलसः
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इम जैन शासन शुद्ध भासन आदरें ऊलट धरी भवदुक्ख कापी जगतव्यापी लहेसूं ते सिवकरी ॥१॥ में पासचरणा पापहरणा सेवतां चउमासमें
त्रिक तत्त्वपुजा हरण रुजा रचि भगवइसार में ॥२॥ निजरूप लेवा जगतदेवा स्थूणां कीरतिजीववरें नवसारिइं जस केसरे ओली मासमें पूजा करें ॥३॥ इति त्रण तत्त्वनी पूजा समाप्ता ॥
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अथ विद्धि, प्रगट, परं किंचित् लिख्यते ॥ प्रथम आसातना टाली सर्वे ठेकाणें बाहिर ने मांहि धूप उखेवी पछें त्रगडें प्रभू नव तथा त्रण तथा एक पधरावी स्नात्र भणावी तेहनी आगळ मेवा फलादिक सर्व त्रण त्रण वस्तु जघन्यथी सत्ताविस तो ढोकवी ज, अथवा एकासी, अथवा मलें ते सर्व नव नव । अने उत्कृष्टी केहवा मात्रथी तत्त्वत्रिकमां गुणभेद गणिनें तेली वस्तू सर्व नव नव लावें । यथा अरिहंत पदें १२, साधुपदे २७, धर्मपदें ४८, नांणपदें ५१, दर्शनपदें ६७, चारित्रपदें ७०, संवरपदें ५७, निरजरापदें १२, अने मोक्षपदें ९, सर्व मली ३५३ वस्तु नव नव ढोकीइं । जे माटें नैवैदपूजा श्रीश्राद्धविधिमें नित्य करवि कीधी छें, महाफलंदाइ छें । अने नकरो पण यथाशक्ति त्रण सोनानाणुं वा रूपानाणुं, त्रण अर्धा पण मुंकवा । शक्तिई नव नव मुकवा । अने जिहां थालना चाल होय ते ए नैवदादिकना नव थाल करी मांहि नाणुं मुंकी पुजादीठ ते लेइ उभो रहें । अनें प्रभूनी पूजानें अर्थे अष्ट प्रकार मेलवी नव तथा त्रण, अणहुंतें एक पण कलस धारी पुष्पचंदनादिक आठें वस्तु कलसनी जोडें थालमां लेइ उभो रहें । परं बीजो कोय न होय तो । अनें होय तो बीजो पूजानी वस्तुनो थाल लेइ कलसधारी सामे उभो रहें । पुजादीठ कलश ढाली अंगलुंणुं करी ओ पुजानी वस्तुनो थाल लेइ उभो होय तेमाथी लेइ अष्टप्रकारी पूजा करें। बीजी पूजाई पाछो बीजो सामान नवो लेवो । अनें जो इंद्राणिओ करे तो गाजते वाजतें बडे आडंबरें इंद्राणीओ थइ होय