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अनुसन्धान-७५(२)
ते प्रभुपुजानें अर्थे रकेबीमां ढांकीने अष्टें प्रकार लेइ आवें । ते इंद्र लेइ उभा रहें । इम पुजा दीठ । पण छेहडें अधिक भक्ती करवी । अनें पुजा थयें जे दीपक करें ते सर्वे पूजा यावत् नवें साचववा । इति विद्धि । अविद्धिनो मिच्छामि दुक्कडं ॥ श्रीरस्तु कल्याणमस्तु ।
केटलांक शब्दो मेवाम्रादिक - मेवो, आम्रफल वगेरे नुन्याधिक - न्यूनाधिक मुणिगुणसमि - २७
रजूमति - ऋजुमति उकोसय - उत्कृष्टथी
महातुष - माषतुष मुनि गनेय - ज्ञेय
वय - व्यय-नाश तत्त्ववरगसम - ८१
फोतां - फोतरां आसायण - आशातना
अन्यन्य - अनन्य विस ठाण - वीशस्थानक
अगन्यानि - अज्ञानी दुर्य - दूर
सतकी - सत्यकी विद्याधर नुन्य - न्यून
जहन - जघन्य सुगडांग - सूत्रकृताङ्ग नामे आगमग्रन्थ सीउंण - शीतोष्ण दशकंधर - रावण
डांसा - डांस-मच्छर श्रीओं - पांच परमेष्ठी
संवेद - जाणो सुमति - समिति
खपुफवत - आकाशकुसुमवत् कान - श्रीकृष्ण
अद्धा - काळ सिथल - शिथिल
इत्थी - स्त्री गिरिमहात्मे - 'शत्रुजयमाहात्म्य' ग्रन्थमां अधिष्ठायो - अधिष्टायक देव
नोंघ : आखी रचना जैन धर्मसम्बन्धित धार्मिक अनुष्ठानपरक छे. तेमां जैन नव तत्त्वोनुं विस्तारथी वर्णन छे, तेथी घणा बधा शब्द शास्त्रोक्त परिभाषाना छे, जे तत्कालीन बोलचालनी भाषामां अपभ्रष्ट रूपे ढांळेला छे. ते बधाना अर्थ अहीं आप्या नथी. केमके ते माटे घणो अभ्यास करवामां आवे तो ज वाचकने ते परिभाषा समजमां आवे.