________________
अनुसन्धान- ७५ (२ )
ग्यांन दरसन क्खायकभावें छें, परणामिकनुं जांणोजी रे । जीवित सर्व सिद्धनुं मुणिई, अल्प बहुत्व वखाणो | प्र० ||६|| कृत नपुंसक सिद्धथी इत्थी, संख्यातगुणि सिद्धि जी रे । तेहथी संख्यगुण नर पण लहिइं, सिद्ध में सम हि ज रिद्धि ||प्र० ||७|| एह सिद्धमें नहि मोटा छोटा, राजा रंक नें इत्थी जी रे ।
नर नपुंसक बाल वरद्धनें, नहि तिहां नगर ने विथी ॥ ० ॥८॥
सुक्षम बादर सपज्ज अपज्जा, त्रस थावरपणुं नांहि जीरे । इंद्रिय प्रांण प्रमुख कर्म ज्यांहि, अनंत चतुष्टय त्यांहि ॥ प्र० ||९|| ग्यांन ध्यांन किरिया तप सेवें, जीवा संख एहि कामें जी रे । पुजो ते तत्त्वधरा केसरसुं, भाजें ए सवी दुक्ख नामें ॥ प्र० ||१०|| नहीँ श्रीँ० पूर्ववत् ॥ इति तृतीयतत्त्वत्रिकें तृतीयपूजा ॥९॥
१६०
*
अथ कलशनी ढाल
[तुठो तुठो रे मुझ साहेब जगनो तुठो - ए देशी ॥] गायो गायो रे भलै जैन कलपतरु गायो । सय पणयालिस गाथा करिनें, सुरतरु जैन कहायो रे भलें जैन कलपतरु गायो ॥१॥ ए आंकणी ॥
तत्त्वभंग भणतां भवमांहि, पार कदीय न पायो । पण तुछबुधिरं नाम ज कहिनें, जिनशासन ओलखायो रे भ० ॥२॥ समकिति सरल दोनुं नरनारी, दो भव हित निपायो । अभ्यासि ओलखी जैन तत्त्व, पुजो बहु सुखदायो रे भ० ॥३॥ विधिशुद्ध राग अह फलदाइ, दो अनुष्ठानें ठरायो ।
अन्यथा भवफल लेखें न कहीइं, समजी चित्तमें लायो रे भ० ||४|| मांड्यो तब ए मनोरथ पुर्यो, प्राये पास अधिष्ठायो ।
जब पच्छिम रयणि त्रण डंका, देहरासरमांहि थायो रे भ० ॥५॥ भनु नंद चंदंवरषें आदि, दीपाली पक्षे पुरायो ।
सिंह सुरि सुंनु सत्यविजयो, कपुर खेमा जिन जायो रे भ० ||६||