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________________ सप्टेम्बर - २०१८ १५३ पयनां सुत्रे छे ए अनुमानें, वरते बहु तस जोगा। कुंण कारण शेष सूत्रे न ठवियां, बहुश्रुत तस उपयोगा, हो प्राणि; धर्म० ११ ।। सादिसांतपणे भरतादि दशमें, गणिपीटकनी वाख्या । विदेह पंचें अनादि अनंता, भाव सवें तस आख्या, हो प्राणि, धर्म० १२ ।। तत्त्व एह सहु जैन में वरतें, मुढ मीथ्यात्वी न जांणें । हेमफलभक्षी ज्युं हेम ज देखें, सर्वनें त्युंहि वखांणे, हो प्रांणि, धर्म० १३ ।। जिम फल(ला?)हार नंतकाय उपवासें, - नतां तीरथ लेखें । होली बलेव नोरता इत्य करणी, श्राध ते सर्व उवेखें, हो प्राणि, धर्म० १४ ॥ एहि तत्त्व शुद्ध श्रधा करीने, सम्यक धरम ले तरिया ।। गोयमाइ जीव धर्मनायक पुजो, केसर सुं सिव वरिया, हो प्राणि, धर्म० १५ ॥ __ ही श्री. पूर्ववत् ॥ इति प्रथम तत्त्वत्रिके तृतीयपूजा ॥३॥ दूहा शुद्धि तत्त्वसरधा थकी, तेहy कारण एक । नाण विना कछु नवि लहें, त्रिजग भाव अनेक ॥१॥ अथ ढालः [हारें तुमें भावे पूजो रे मनमोहना - ए देशी ॥] हारें तुमें नाण सेवो भवि प्राणिया, हारे पंच भेद सवे तस जाणिया जी हो, ___ नाण लोयण जगजंतुमें ।। ए आंकणी ।। हारे वली श्रधाविण जे ते अनाण छे, हां रे आदित्रणमांहि भव अकांण , जीहो, ना० ॥१॥ हारे मति उपजें तेह मतिनाणसुं, हारे निज जातिसमरण पण ताणसुं जीहो, ना० । हरि इहां अडविस भेद तस चालणा, हारे अत्थुग्गह इहा वाय धारणा जीहो, ना० ॥२॥ हारे एह च्यारे करण मनसें करो, हारे चउविस चउ वंजण आइ संवरो जीहो, ना० । हरि सूतबलें करी सूत्रगति आवडे, हारे चउदश वली भेद इहां वावडें जीहो, ना० ॥३॥ हारे अक्षर सुत्त सन्नी समकितना, हारे सादि सांत गमिक कालिकना जीहो,ना० ।
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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