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अनुसन्धान-७५ (२
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दूहा
केवल भाषित धर्म जे, ते जैन आगममांहि । सुत्र अरथ मुनि भणें, श्रावक अरथ उछांहि ॥१॥
अथ ढालः
[ ए व्रत जगमें दीवो मेरे प्यारे ए व्रत जगमें दीवो - ए देशी ॥] धर्म जिनेश्वर दीवो हो प्राणि, धर्मजिनेश्वर दीवो लोक लोकन पईवो हो प्राणि, धर्मजि० ॥ ए आंकणी ॥
मूल धर्म दोय सूत्रं भेद अनेका, सहुनें अभ्यास न दाख्या । गणधराचार्य उपाध्याय साधु, जैनकल्पि थीर आख्या, हो प्राणि, धर्म० १ ॥ संवेगपक्षी श्रावक व्रतधारी, गतविरति तिम जांणो,
उत्सर्ग में अपवाद प्रमुखा, स्याद्वादें चित्त आणो, हो प्राणि, धर्म० २ ॥ जिम अहिंसक मुनिवर महीमें, कारणें कह्युं रूप हिंसा । चुन्निज्जा चक्कवट्टीसैनं, लब्धिधारी न खिंसा, हो प्राणि, धर्म० ३ ॥ प्रकारांतरें त्युं स्याद्वाद सगलें, अन्यथा एकहिज भाषा । इति -
-- धर्म, योगविण भणें ते लाखा, हों प्रांणि, धर्म० ४ ॥
चमासी अघ वाचना देतां, गृहीने आगम केरी ।
कह्युं निसिथमांहि नंदिसूत्रे वली, जोग वही सुत्त हेरी, हो प्राणि, धर्म० ५ ॥ श्रावकधर्ममें वहें उपध्यान, तिम एकादश पडिमा । एकविस गुणधारी पणतिसा, मार्गानुसारी लहें महिमा, हो प्राणि, धर्म० ६ ॥ गण-पुरवधर दश पर्यांतें, प्रत्येकबुधें जे भाष्यां ।
ते सगलां सुत्रमांहि कहिइं, बीजां प्रकरणादि आख्यां, हो प्राणि, धर्म० ७ ॥ विण जोगें पर (प्र) करणादि भणतां, आसायण कोनें न छापें ।
आसातना जिन आगम करतां, दोनुं वि दुट्ठफल आपें, हो प्राणि, धर्म० ८ ॥ नरग सरग अपवरग जीवादिक, षट द्रव्य वस्तु स्वभावा ।
उत्पाद-वय- ध्रुव धर्म अनेका, आगमथी लहें भावा, हो प्राणि, धर्म० ९ ॥ आज आगम पीस्तालिस कहियां, दश पयनांजूत तेह |
पयनां जिनजी शिष प्रमाणें, प्रायें प्रत्येकबुध एहि, हो प्राणि, धर्म० १० ॥