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________________ सप्टेम्बर - २०१८ जसु कुसुद्ध मन केम सो, जिनवचने बुझेय ?, तो तेहने अर्थे गुणी, फोकट आत्म दमेय करनो अरु साधन तथा, रहो प्रभावण दूर, सुद्ध धरम श्रद्धान पिण, हरे कठिन दुख - पूर ते दिन क्यारे आवसे, ज्यारे सद्गुरु पास, उत्सूत्रां से रहित जिन-धर्म सुंणीसूं खास दीठा पिण केइक गुरू, न गमे जाण हियेय, अदीठाहिं जग मे, जिम जिनवल्लभ श्रेय आरंभी अति पापीने, जिनवर सुगुरु समान, जे जाणे ते जीव जिन-धर्म-विमुख बेभान वांदे पूजे जेहने, हीले तेहनो वे (व) यण, वांदे पूजे किम तदा ?, जन-थिति जूये न सयन कह जन जे आराधिये, न कोपाईये तेह, मांनीजो तसु वेन जो, वंछित तुं वांछेह दुष्ट-उदय दुख प्रगटजन, दूषम-दंड छतेय, तसु प्रणमुं जे धन्यनो, समकित - गुण न चलेय समय सुबुद्धि व्यवहार- नय, निज मतिने अनुसार, काल क्षेत्र अनुमांनथी, सुपरिक्षत गुरु धार तो पण निज जडता करी, न गुरु-कर्म-विश्वास, पुन्ये धन्य कृतार्थने, मिले सुगुरु गुण-रास वलि हुं अन्य तदा जदी, लाधो नवि लाधोय, तो पण ते मुझ सरण अब, जुगप्रधान गुरु जोय सम्यग् जांणे केवली, जैन धर्म दुर्ज्ञेय, तदपि जाणणा योग्य हे, श्रुत-व्यवहारे तेय सोधित - श्रुत-व्यवहारने, निर्मल समकित थाय, जिन आज्ञाराधन थकी, जे कारन जिन गाय जे जे गुरु अब देखीये, ते न मिले श्रुत-न्याय, पिण श्रद्धा इक छे चरण, दुपसह अंत गवाय १२६ १२७ १२८ १२९ १३० १३१ १३२ १३३ १३४ १३५ १३६ १३७ १३८ १३९ १३१
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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