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________________ सप्टेम्बर - २०१८ १२९ १०० १०२ १०४ एक मर[ण] लघु-भूपनी, आणा भंगथी थाय, सुं वलि त्रिभुवन-भूपनी, आण हणे कहवाय? ९८ जग-हितकर जिनवर-वचन, ते कारण भविलोय !, तास विरोधे धर्म किम ?, जीवदया किम होय? ९९ सूत्र-रहित दर्शि अधिक, क्रिया तणो मंडाण, ऋजु-रंजण मुनि-हीलवा, फिरे मूढ गत-त्राण सुद्ध धर्म कुं जो दिए, सो जिनराज न ओर, सुरतरु सम तरु अन्य क्या ?, होय कहो किणि ठोर२६ १०१ जे गुण दोष अज्ञात ते, किम बुध मे बुध होय, अथ ते जो बुध होय तो, सम विष अमृत दोय मूल जिनेश्वर तद् वचन, गुरुजन गाढा सयन, शेष पाप-थानक तजूं, निज परनो दिन रयन राग रोस किनि उपरे, नहि हमने छे एक, धर्म तेह जिनआण-रत, छे गुरु ओर विवेक निज-पर गुरु न करे कदा, तत्त्वज्ञात-गतगर्व, जैनवचन-मणिमंडणे, मंडित ते गुरु सर्व सुद्ध पुण्ययुत सजन जन, तसु जइये बलिहार, जस लघु संगमथी हुवे, धर्मबुद्धि-विस्तार १०६ केई आज पिण आकरा, दीसे गुणि गुरु सुद्ध, प्रभु जिनवल्लभ सारिखा, वलि जिनवल्लभ बुद्ध १०७ गुरु जिनवल्लभ-वचनथी, उलसे सम्म न जास, हरे घूक कि अंधता, केसे भानु-प्रकास? . मरता जगजन जोइने, जे न करे वस मन्न, पाप थकी विरमे नही, ते नर धीठ अधन्न सोक विलाप करी उदर, सिर कूटी उर देह, नाखे नरके जीवने, धिग् ! धिग् ! ते दुर्नेह प्रिये मरणनो एक दुख, बीजुं नरक मझार, इक तो पडवू मालथी, बीजुं दंड-प्रहार १०५
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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