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________________ सप्टेम्बर २०१८ मिथ्यादृष्टि अज्ञानिनो, दोष जूये सूंयोध, नहि जांणे स्युं आपने ?, कष्टे समकित - बोध आचरता मिथ्यात्वने, जे चाहत जिनधर्म, ज्वर - पीडत ते पय पिवा, वांछे विकल विमर्श जिम केईक सुकुलवधू, व्रतहत लिये कुल नाम, आचरता मिथ्यात्व तिम, वहे सुगुरु अनुगाम आचरता उत्सूत्र जे, माने आप सुसड्ड, रौद्र दरिद्रे दुखित ते, तुले साथ सुधनड्ड केई कुलाचारे रता, केई रत जिनमतमांहि, जूओ भ्रात! इति अंतरे, लखे न्याय सठ नाहि अहितकारि जसु संग पिण, जे तसु धर्म करेय, चोर - संग तजि चोरिने, करे पापि नर तेय पातक-नवमी पर्वमे, पसु मरता जसु पास, तेहने पूजित श्राद्ध-जन, हा ! जिन - हेला हास गृह-कुटुंब- स्वामी छतो, थापे मिथ्यात, नाख्यो तेणे वंस सब, भवसमुद्रमे भ्रात ! बारस नवमी चौथ मृत- - पिंड प्रमुख मिथ्यात, जे नर सेवे तेहने, नहि समकित - अवदात जिम कादव खूतो शकट, काढे केईक धोरि, तिम कुटुंब मिथ्यात्वथी, काढे केई सजोर जेसे महितल - प्रगट भी, घनयुत रवि न दिखाय, तेसे उदय मिथ्यात्व के, नहि दिसत जिनराय किम ते जायो जानिये, जायो तो किम पुष्ट, मिथ्यामगन थयो जदी, तिम गुण-मच्छर दुष्ट वैश्या ब्राह्मण भाट डुंबर, जख्य सिक्ष इनकाय, २३ भक्षस्थान स्वभगत छे, विरतीथी अलगाय २४ सुखे सुद्ध मारग चले, थया सुद्ध मग जेय, जात कुमार्गि मार्गमे, चाले अचरज तेय ७० ७१ ७२ ७३ ७४ ७५ ७६ ७७ ७८ ७९ ८० ८१ ८२ ८३ १२७
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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