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________________ १२६ अनुसन्धान-७५(२) णीच प्रशंसाये भणे, उत्श्रुत धीठ नीलाज, जो भावी दुख तेहने, सो जाने जिनराज बोधिनास उत्सूत्रि के, जामण५ मरण अनंत, प्राण तजे पिण धीर तत, नहि उत्सूत्र भणंत अविधि-कीर्ति न करे कदा, ऋजुजन-रंजन-हेत, सुभ कुल कि वधू भि क्या, वेश्या-चरित थुणेत ? ५८ भवभयथी अति भीरु जे, आण-भंग-भय तास, भवभयथी अभीरुने, आणा-भंजन हास जो नसि स्तुत-युत चेतना, किसो अस्तुतनो दोस?, धिग् ! धिग् ! कर्मन कुं यदा, लभध अलभ जिन-पोस६० करवू पर उपहास जे, ते अयुक्त जिनदास !, कुल-प्रसूत के अगनि ले(जे), धरम विषे जो हास ६१ मिथ्यात्वे संतोष जसु, जिनवर-वचने द्वेष, तसु पिण सुद्ध मना दिए, परम सुहित उपदेस ६२ सरल सुभावी स्वजन हुये, निर्विकल्प सब ठोर, डसित साप उपर १६अपी, करे कृपा क्या ओर? ६३ गृहव्यापार-रहितं घण, मुनि पिण समकित-हीन, इह सालंबन श्राद्ध कू, कहिये किसुं ? कुलीन ! किमहि न उत्श्रुत भाखवू, उत्श्रुत भाख्युं जोय, तो सहि बूडिस भव्य ! तूं, निर्थक जप तप होय ६५ जिम जिम जिनवच सुमनने, प्रगमे८ सम्यक् प्रकार, तिम तिम लोकप्रवाहमे, धर्म-भाति नटचार९ सुद्ध ज्ञान-कर जसु हिये, सम्यक् वसे जिनेश, तसु आगे तण जिम दिपे, मिथ्याधर्मि अशेष लोकप्रवाह-पवन-उदंड, चंड प्रचंड लहरेय, दृढ समकित अति बल, गुरुआ पिण हल्लेय जिनमतनी निंदा करी, जो अज्ञानी दुख पाय, ते सांभरि ज्ञानि तणो, भय करि कंपे काय
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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