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अनुसन्धान-७५(२)
णीच प्रशंसाये भणे, उत्श्रुत धीठ नीलाज, जो भावी दुख तेहने, सो जाने जिनराज बोधिनास उत्सूत्रि के, जामण५ मरण अनंत, प्राण तजे पिण धीर तत, नहि उत्सूत्र भणंत अविधि-कीर्ति न करे कदा, ऋजुजन-रंजन-हेत, सुभ कुल कि वधू भि क्या, वेश्या-चरित थुणेत ? ५८ भवभयथी अति भीरु जे, आण-भंग-भय तास, भवभयथी अभीरुने, आणा-भंजन हास जो नसि स्तुत-युत चेतना, किसो अस्तुतनो दोस?, धिग् ! धिग् ! कर्मन कुं यदा, लभध अलभ जिन-पोस६० करवू पर उपहास जे, ते अयुक्त जिनदास !, कुल-प्रसूत के अगनि ले(जे), धरम विषे जो हास ६१ मिथ्यात्वे संतोष जसु, जिनवर-वचने द्वेष, तसु पिण सुद्ध मना दिए, परम सुहित उपदेस ६२ सरल सुभावी स्वजन हुये, निर्विकल्प सब ठोर, डसित साप उपर १६अपी, करे कृपा क्या ओर? ६३ गृहव्यापार-रहितं घण, मुनि पिण समकित-हीन, इह सालंबन श्राद्ध कू, कहिये किसुं ? कुलीन ! किमहि न उत्श्रुत भाखवू, उत्श्रुत भाख्युं जोय, तो सहि बूडिस भव्य ! तूं, निर्थक जप तप होय ६५ जिम जिम जिनवच सुमनने, प्रगमे८ सम्यक् प्रकार, तिम तिम लोकप्रवाहमे, धर्म-भाति नटचार९ सुद्ध ज्ञान-कर जसु हिये, सम्यक् वसे जिनेश, तसु आगे तण जिम दिपे, मिथ्याधर्मि अशेष लोकप्रवाह-पवन-उदंड, चंड प्रचंड लहरेय, दृढ समकित अति बल, गुरुआ पिण हल्लेय जिनमतनी निंदा करी, जो अज्ञानी दुख पाय, ते सांभरि ज्ञानि तणो, भय करि कंपे काय