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सप्टेम्बर - २०१८
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सूत्र-भाख्यित नर धन्य तस, रोष वि उपसम-कोश, उत्सूत्री की पण क्षमा, महा-मोह-घर-दोश जो शिवसुख जिणधर्मथी, एकभि नहि संदेह, पुन्यहीण के जाणवो, कठिण मोक्षसुख तेह चतुराई सब ही कला, लहिये जगत सुजाण, पिण दुर्लभ एक जैनमत, विधि-रत्न-विज्ञान बहुलता य मिथ्यात्व की, दुर्लभ सुसमकित ज्ञान, जिम पापी नृप के उदे, वर-नरनाथ-कथान बहु-गुण विद्यागेह जो, तदपि उत्सूत्री हेय, जिन वर-मणि-जुत विघ्नकर, विषधर लोक विषे य १८ स्वजन-नेह धन-लोभ करि, सेवे लोक मिथ्यात, रम्य धरम मे नवि रमे, हा ! अग्यान-उतपात ग्रह-चिंताये दुखित नर, तसु विसा(श्रा)मनो थान [...] नारी हुवे अवरन के प्रभु-ध्यान सम पिण उदर भरे जूओ, मूढ अमूढ विपाक, मूढ लहे नरकादि-दुख, निपुण लहे शिव नाक' जिनमत-कथा प्रबंध सब, जण संवेग उपाय, संवेग तु समकित छते, समकित सुद्ध गिराय' तो जिनआण-परे धरम, सुंणवो सुगुरु सकाश अथवा तत उपदेश को, कथक सुश्रावक पास कथा ज्ञान उपदेश ते, जाणे जाते जीव, समकित अरु मिथ्यात्वनो, भाव त्रिलोक-थितीव २४ जिनगुण-मणि-निधि पायकर', किम न था(जा)य मिथ्यात?, निधि पाये पिण कृपण के, वलि दरिद्र विख्यात २५ धर्म-पर्व संवत्सरी, चतुर्मासि आदेय, थाप्या तेणे जयतु ते, पापी सुमति धरेय पाप-पर्व जेणे रच्या, असुभ नाम पिण तास, धर्मीने पिण जेहथी, पाप-मती(ति)नो पास
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