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________________ १२२ अनुसन्धान-७५(२) m 3 ॥ ० ॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥ अथ सष्ठि शतकना दुहा ।। धन्य कृतारथ के हिये, श्रीअरिहंत सुदेव, सुगुरु वसे जिनधर्म फुन्', पांच नमण नित मेव १ जो न करे तप दान तुं, न पढे न गुणे तंत, तद आणंद जपो सदा, देव एक अरिहंत भवदुखहरन जिनेंद्रमत, धर्म एक रे जीव !, पर-सुर नमतो तूं मुस्यो', सुभ कारज मेहलीव ३ सुंण्यो देव अरु दानवे, मरणथी राख्यो कोय ?, बहुत वि अजर अमर थया, निश्चल समकित जोय ४ जिम वेश्यारत कोई नर, मने ठगातो सर्म, तिम मिथ्या-वेश्या ठग्यो, लखे न गत-विधि-धर्म ५ लोकप्रवाह स्वकुलक्रमे, धर्म होय जो बाल !, तो धर्मी ! मिथ्यात्वकुल-थकी अधर्म की चाल ६ कुलाचार करि जो नही, राजनीति मे न्याय, जैन राजमे तो किसुं, कुलाचार करि भाय ? कर्मे जिनमत-निपुण को, जो भव-विरति न होय, तो मिथ्यात्वहत मूढ के, पास विरति किम जोय? ८ देख अविरति जीव कुं, ताप विरति मन होय, हा ! हा ! किम भवकूप में, बूडता नाचे जोय आरंभज पापे करी, जीव महादुख पाय, वलि मिथ्यात्व-लवे करी, लहे न समकित भाय! १० देशना य उत्सूत्र की, होय जिणाज्ञा-भंग, आज्ञाभंगे पाप तद्, दुःकर जिण धरमंग केई मूढ अन्याय करि, आणभंग जिम थाय, तिम जिणद्रव्य वदारतां, बुडे भवोदधीमांहि कुग्रह-ग्रह-ग्रही जीवकुं, जो ऋजु धर्म सुणाय, चर्मभखि-कूकर-मुखे, सो कर्पूर चवाय
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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