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सप्टेम्बर
२०१८
कवि मोहन - कृत
षष्ठिशतक प्रकरण दूहा
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सं. - गणि सुयशचन्द्रविजय मुनि सुजसचन्द्रविजय
खरतरगच्छीय श्रीजिनपतिसूरिजीना उपदेशथी प्रतिबोधित थयेला मरोठना श्रावक नेमिचंद्र भांडागारिके (भंडारीए) १३मी शताब्दीमां प्राकृत भाषामां एक विशिष्ट ग्रन्थनी रचना करी तेनुं नाम आप्युं 'षष्ठिशतक'. कुल १६० गाथानुं काव्य होवाथी कविए 'षष्ठिशतक' एवं कृतिनुं नाम प्रयोज्युं हशे, पण कृति साद्यन्त तपासतां, कवि तीखी कलम जोतां एवं लागे छे के कदाच कृतिना नामनी आगळ जो 'समालोचना' शब्द उमेरी कृतिनुं 'समालोचना षष्ठिशतक' नामाभिधान करायुं होत तो खरेखर कृतिने अनुरूप गणात.
कविए मूळ काव्यमां गच्छना रागथी प्रवेशेली वाडाबंधीथी बंधाएला, स्वपक्षमां ज सम्यक्त्वनी ठेकेदारी समजनारा, स्वमतिथी कल्पेला पदार्थोंने शास्त्रसंमत गणावी उत्सूत्रभाषण करनारा, मनस्वी रीते धर्मनी व्याख्या करनारा एवा सुगुरु (?) नी के सुश्राद्ध (?) नी जे आकरी आलोचना करी छे ते खरेखर कविनी शुद्ध धर्मनी प्रीति जणाय छे. तो वली तत्कालीन समाजव्यवस्थामां प्रवेशेली कुनीति अने कुरीतिनी वर्णना द्वारा कविनो समाजसुधारानो दृष्टिकोण आजेय समजवा स्वीकारवा योग्य लागे छे.
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प्रस्तुत सम्पादित कृति षष्ठिशतक ग्रन्थनी भाषाबद्ध रचना होइ कवि मोहने उपरोक्त दरेक भावोने ओछा पण सुन्दर शब्दोमां रजू कर्या छे. कविनी परम्परा, तेमनो समय के ग्रन्थरचनासमयादिनी काव्यमां कशी ज नोंध नथी, पण काव्यरचना जोतां प्रायः १९ मी शताब्दीनी आसपासनी रचना छे एम जणाय छे.
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प्रान्ते प्रस्तुत काव्यनी तुलना जो वर्तमान काळनी अपेक्षाए करवानो अवसर मळे तो कदाच आवा ५-६ के तेथी वधु शतको रचाय. तेवुं कहेवामां जराये अतिशयोक्ति नथी लागती.
प्रस्तुत कृतिनी हस्तप्रतनी Xerox सम्पादनार्थे आपवा बदल श्रीशीतलवाडी जैन ज्ञानमन्दिर (सुरत) तथा श्रीआत्मानन्द सभा ज्ञानमन्दिर (भावनगर) ना व्यवस्थापकोनो खूब खूब आभार.