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________________ ११२ अनुसन्धान- ७५ (२) मेतार्य-हरिकेशबल-षट्पदौ प्रागुक्तौ ॥ जो विअ पाडेऊणं, मायामोसेहिं खाइ मुद्धजणं । तिग्गाममज्झवासी, सो सोअइ कवडखवगु व्व ॥३८६ ॥ बंभण एक अनेक कूड कवडाइ निरुत्तर, उज्जेणिहिं कड्डियउ देसि चम्मारि२६ स पत्तउ, त्रिहु गामहं विच्चालि २२७ करइ तप वेसि त्रिदंडी, भगत लोक घरसार ३२८ मुसइ ३२९ निसि सु जि पाखंडी, अह चडिउ हत्थि नरवर तणइ नयण कड्डि नडियो घणउं, बहु झूरइ अति सोचइ सुचिर निंदइ निय कूडप्पणउं. ७४ केसिंचि परो लोगो, अन्नेसिं इत्थ होइ इहलोगो । कस्सवि दुन्नि वि लोगा, दोवि हया कस्सई लोगा ॥४३९॥ दुइरंग३३० वरदेव कुट्ठि ३३रूपहिं पहु वंद, छींक करइ जव वीर ताम मरि कहि अभिणंद, सेणिय प्रति चिर जीव अभय प्रति जावड३ बिहुपरि, कालसूर प्रति कहइ म मरि म जीविय अणुसरि, मगहेसर पुच्छइ ए कवणु३३४ कवण एस परमत्थ पुण, जिण भणइ विप्प सेड्डुय-चरिय चिहु प्रकारि नर आचरणु (ण). ७५ अवि इच्छंति अ मरणं, न य परपीडं करंति मणसाऽवि । जे सुविइअसुगइपहा सोअरिअसुओ जहा सुलसो ||४४५॥ वरिअं गमीइ मरण सरण जिण - धम्म धरिज्जइ, जिय-हिंसा पुण घोर घोर दुह- हेउ न किज्जइ, कालसूरियह*५ - पुत्त सुलस जिम पाव निवारउ, पर पीडा परिहरह तरह संसार असारउ, कुल-कारणि किंपि म लिखवउ गुणह रूप गैरैयडि धरउ, परलोग- मग्ग जाणउ सुपरि कुपरि ३३७ कुकम्म म आयरउ. ७६ अरिहंता भगवंता, अहिअं व हिअं व नवि इहं किंचि । वारंति कारवंति अ, घित्तूण जणं बला हत्थे ॥४४८॥ उवएसं पुण तं दिति, जेण चरिएण कित्तिनिलयाणं । देवाण विहुति पहू, किमंग पुण मणुअमित्ताणं ॥ ४४९॥
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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