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________________ ११० अनुसन्धान-७५ (२ ) सेणिय - नंदण नंदिसेण बारस संवछर, वीर-सीस वय छंडि वेस - घरि वसइ समच्छर, दस प्रतिबोध्या विणु न लेइ आहार निरंतर, इक्क न बुज्झइ भणइ वेस दसमा तुम्हि सुंदर, इण वेस वयणि पुण वेस धर चरण ३२१ चरवि३२२ सुर संपजइ, इय जस्स सत्ति देसण तणी अहह सो वि संजम तिजइ, ३२३ ६८ कम्मेहिं वज्जसारोवमेहिं, जउनंदणो वि पडिबुद्धो । सुबहु पि विसूरंतो, न तरइ अप्पक्खमं काउं ॥ २५०॥ अस्य षट्पदः सुतव० गाथायां प्रागुक्तः ॥ वास सहस्सं पि जई, काऊणं संजमं सुविउलं पि । अंते किलिट्टभावो, न विसुज्झइ कंडरीउव्व ॥ २५१ ॥ अप्पेण वि कालेणं, केइ जहागहिअसीलसामन्ना । साहंति निअयकज्जं, पुंडरीअ महारिसिव्व जहा ॥ २५२॥ वरस सहस तव-कट्ठ करिय कंडरिय३२४ न सुद्धउ, अंति युद्ध परिणाम काम-वश नरय निबद्धउ, अचिरकालि परिपालि सुद्ध सुद्ध संजम संपन्नउ, पुंडरीक ३२५ सव्वट्ठसिद्धि २६ सुहबुद्धि निरुत्तर, बहु दुःख सहवि नवि लद्ध सुह अप्प दुक्खि बहु सुख लहिउ, बिहु बंधव ए वड अंतरउ भाव-भेदि भगवति कहिउ. ६९ नरयत्थो ससिराया, बहु भाइ देहलालणासहिओ । पडिओ मि भये भाऊअ तो मे जाएह तं देहं ॥ २५६ ॥ को तेण जीवरहिएण, संपई जाइएण हुज्ज गुणो । जइसि पुरा जायंतो, तो नरए नेव निवडतो ॥२५७॥ जावाउ सावसेसं, जाव य थेवो वि अत्थि ववसाओ । ताव करिज्ज अप्पहियं, मा ससिराया व सोइहिसि ॥ २५८ ॥ नयरि कुसुमपुरि राय-भाय दुइ ससि सूरप्पह, ससी न मन्नइ धम्म रम्म मन्नइ विसू ( स ) यासुह, तप जप विण सो पत्त नरगि त्रीजइ दुह ३२७ तत्तउ, करवि सुर दुह- शूर सग्गि सत्तमइ संपत्तउ,
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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