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अनुसन्धान-७५(२)
पाणच्चए वि पावं, पिपीलियाए वि जे न इच्छंति । ते कह जई अपावा, पावाई करेंति अन्नस्स ॥१७५॥ अत्रार्थे षट्पदः दीसंति० गाथायां उक्तः ॥ के इत्थ करंति आलंबणं, इमं तिहुअणस्स अच्छेरं । अह नियमा खविअंगी, मरुदेवी भगवई सिद्धा ॥१७९॥ सिद्धि पत्त मरुदेवि तपिहिं विणु इणि आलंबणि, केवि करंति पमाय ति पणि अच्छेरय८२ सम गिणि, जिणि कारणि पुव्वंमि जम्मि थावर तरु भीतरि, बोरसंगि बहु अंगि सहिय दुह कम्म वि निज्जरि, सुह भावि पावि परि मुक्कमण सरल सार संतोसमय, जि(ज)णणि नाभिकुलगर२८३-घरणि रिसह-झाणि२८४ निव्वाणि गय. ६२ किंपि कहिपि कयाई, एगे लद्धीहि केहिं वि निभेहिं । पत्तेयबुद्धलाभा, हवंति अच्छेरयम्भूआ ॥१८०॥ निहिसंपत्तमहन्नो, पत्थितो जह जणो निरुत्तप्पो । इह नासइ तह पत्तेअबुद्धलच्छि पडिच्छंतो ॥१८॥ लद्धि२८५पत्त पत्तेयबुद्ध-सुह सिद्धि समाणई, अच्छेरय सम तुल्ल बुल्ल२८६ कि वि ते मनि आणइं, निहि संपत्ति सचित्ति धरवि विवसाय२८७ ति छंडइ, सामग्गी परिहरिय करिय पातग निय दंडई, करकंडु दुमुह ८ नमि नग्गई चिहु चारित्त चिंतिय सुपरि, धरि धम्म रम्म उज्जम सहिय सुक्कमाय२८९ अपमाय२९० करि. ६३ सोऊण गई सुकुमालियाए, तह ससगभसगभइणीए। ताव न वीससितव्वं, सेअट्ठी धम्मिओ जाव ॥१८२॥ ससग२९१ भसग२९२ निवपुत्त-बहिणि सुकुमालिय२९३ कुमरी, चंपापुरि चारित्त लेइ रूपिहिं किर अमरी, फिरइ तरुण तस पासि रागि रत्ता गयगमणी२९५, रक्खइ बंधव बेउ लेइ तिणि अणसण समणी२९५, बहु दिवसि तापि तपि मूरछी मूईय२९६ जाणि वनि परिठवी,२९७ ओसह-विसेसि सु जि२९८ सज्ज करि सत्थवाहि गेहिणि भवी२९९. ६४