________________
१०२
अनुसन्धान-७५(२)
जइ हुंति दुसह-उवसग्ग सहइ इम गिहत्थ सुकुमाल-तणु, ता अइदुद्धर-चारित्तधर साहु केम न सहति पुण. ४१ देवेहिं कामदेवो, गिही वि न वि चालिओ तवगुणेहि । मत्तगइंदभुअंगम, रक्खसघोरट्टहासेहिं ॥१२१॥ चंपापुरि अड्डार कोडि धणवइ कोडुबिय, पोसह करि कासग्गि रहिउ निसि भुज-आलंबिय, इंद्र-प्रसंस असद्दहंत७२ अमरेहिं परक्खिय७३, मत्त-गइंद भुयंग घोर रक्खस-भय दक्खिय७४, नहु चलिउ मेरुचूला-अचल कामदेव-गिहवइ सुथिर, पहुवीर पयासिउ प्रह समई सीसवग्ग-अग्गलि सुचिर. ४२ भोगे अभंजमाणा वि, केइ मोहा पडंति अहरगई। कुविओ आहारत्थी, जत्ताइजणस्स दमगुव्व ॥१२२॥ रायग्गिहि इक रंक अछइ अइ-दुक्खिउ-अग्गई।७५, उज्जाणी जण जत्त पत्त तर्हि भिक्ख सु मग्गइ, अलहंतउ७६ अइ-रोसि दोसि निय कम्मिहि नडिउ, चूरिसु लोग समग्ग एम चिंतिय गिरि चडिउ, ढोले इटोल परबत तणा गडघडाट सुणि नट्ठ सु(स)हु, पाषाणि तेणि सो चंपिउ नरय दुक्ख पामिउ दुसहु. ४३ माणी गुरुपडिणीओ, अणत्थभरिओ अमग्गयारी अ। मोहं किलेसजालं, सो खाइ जहेव गोसालो ॥१३०॥ वद्धमाण वय लिद्ध जाव बीजउ वरसालउ८, मुंड-तुंड१७९ मंडेवि१८० पुट्ठि विलगउ८१ गोसालउ, जिण-वयणिहि विधि जाणि तेजलेश्या तपि साधीय १८२तह अठंग निमित्त कहवि विज्जा तिणि लाधीय८३, उम्मग्ग-चारि अनरथ भरिउ गुरुद्रोही गरविहिं नडिउ, मंखलि-सुय मोघ-किलेस करि दुह-सायरि दुत्तरि पडिउ. ४४ अक्कोसण तज्जण ताडणाओ, अवमाण हीलणाओ अ। मुणिणो मुणिअपरभवा, दढप्पहारिव्व विसहति ॥१३६॥