________________
१००
अनुसन्धान-७५(२)
जीयं काऊण पणं तुरमिणिदत्तस्स कालिअज्जेण । अवि अ सरीरं चत्तं, न य भणियमहम्मसंजुत्तं ॥१०५॥ तुरमिणिपुरी नरिंद दत्त बंभणकुलि बहु-बल, माउल१४८ कालिगसूरियासि पुच्छइ जन्नह'४९-फल, अंग-पीड अंगमिय५० सुगुरु सव्वं चिय जंपइ, जागि जीव-वधि नरय सुणवि सु जि कोपिइं कंपइ, सहि नाण जाणि सत्तम दिवसि मल-प्रवेश मुहि तुझ तणइ, दुक्खिन्न दुट्ठ भय परिहरिय धम्मवयण मुणि इम भणइ. ३५ फुडपागडमकहतो, जहट्ठियं बोहिलाभमुवहणइ। जह भगवओ विसालो, जरमरणमहोअही आसी ॥१०६॥ आसि मरीइ मुणिंद भरह-सुय निय वय छंडइ, किय परिवा५'यग-वेस रिसह-पहु सरिसउ५२ हिंडइ, पडिबोहइ बहु लोय दिक्ख जिण-पासि लिवारइ१५३, अन्न दिवसि अति कुटिल कपिल तसु वयण विचारइ, तसु शिष्य-काज फुड५४ नवि कहइ इत्थ ओत्थ बिहु धम्म छइ, भव कोडि-सागर भमिउ हूउ वीर जिण तउ पछइ. ३६ अप्पहियमायरंतो, अणुमोयंतो अ सुग्गइं लहइ। रहकारदाण-अणुमोयगो, मिगो जह य बलदेवो ॥१०८॥ कन्ह-मरणि बलभद्द तवइ तव तुंगियगिरि-सिरि, जाइसरण इक हरिण रहइ अह निसि रिषि परिसरि, कट्ठ-कज्जि रहकार पत्त वनि संख५६ कपावइ, जिमण-वेल जाणेवि लेवि मुणि मृग तहिं५० आवइ,
ओदियइ दानउ मुद्ध तपउ बिहु गुण मनि चितवइ, सिरि पडइ डाल समकाल त्रिहुं बंभलोय-सुरगति हवइ. ३७ जं तं कयं पुर पूरणेण, अइदुक्करं चिरं कालं । जइ तं दयावरो इह, करितो तो सफलयं होतं ॥१०९॥ पूरणसिट्ठि बिभेल गामि लिइ तापस दिक्खा, दीन-खयर१५८-जलचरह-अप्प चिहु भागिहिं भिक्खा, बार वरिस बहु कट्ठ छ?-तप करइ दया विण,