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________________ सप्टेम्बर २०१८ धन्न सीहगिरि-सीस जेहिं मन्निय इय वाणीय, जे माण- गण मनि परिहरी सुगुरु-वयण इम सद्दहई, ते सुद्ध साधु सुकुलीण सवि गुण-निहाण गुरु पडिलहइं. ३१ वुड्डावासे विठियं, अहव गिलाणं गुरुं परिभवंति । दत्तुव्व धम्मवीमंसएण, दुस्सिक्खियं तं पि ॥९९॥ संगमसूरि गिलाण १३५ वासि संजम - विहि रक्खइ, धम्मत्थलि तस सीस दत्त गुरुदोस निरिख, खित्त-विहार सविज्ज - पिंड अंगुलि- दिप्पंतिय १३६, नित्य वास नितु सरसु१३७ असण दीवय भणि चिंतिय, १३८ मन्नंतर मनि अप्पउं सगुण निगुण तणवि गुरु परिभवइ, १३९ घोरंधयार घण-१४°सइ करि सम्मदिट्ठि-सुर सिक्खवइ . ३२ आयरियभत्तिरागो, कस्स सुनक्खत्त महरिसीसरिसो । अवि जीवियं ववसिअं, न चेव गुरुपरिभवो सहिओ ॥ १०० ॥ वडूमाण विहरंत नयरि सावत्थिहिं आवइ, गोसालउ चउसाल१४१ आप तित्थयर भणावइ, मंखलि - पुत्त - सरूव कहइ पहु पुच्छिउ सीसिहिं, जिणवर - संमुह मुक्क ते १४२ - लेसा तिणि रीसिहि, तं पक्खि सुगुरु- परिभव असह सुनक्खत्त मुनि विचि१४२ थयउ, तिणि तेजि - दद्ध आराधना करवि सग्गि अच्युति गयउ ३३ बहुसुक्खसयसहस्साण, दायगा मोयगा दुहसयाणं । आयरिआ फुडमेयं, केसिपएसी य ते हेऊ ॥१०२॥ नरयगइगमण पsिहत्थए, कए तह पएसिणा रन्ना । अमरविमाणं पत्तं तं आयरिअप्पभावेणं ॥१०३॥ नाहियवादि १४४ नरिंद नयरि सेतंबी पएसी १४५, पास सीस विहरंत पत्त तहिं गणहर केसी, नरयगमणि इक - चित्त सुगुरु- वयणिहिं पडिबोहिउ, सावय- धम्म सुरम्म करवि तिणि अप्पउ९४६ सोहिउ९४६, बहुकालि काल करि सु जि सरिउ सूरिआभ विमाणि सुर, इम दुरिय दुक्ख दूरिहिं हणी सयल सुक्ख साधइ सुगुरु. ३४ ९९
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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