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________________ ९८ अनुसन्धान-७५(२) सुंदर सुकुमाल सुहोइएण, विविहेहिं तवविसेसेहिं । तह सोसविओ अप्पा, जह नवि नाओ सभवणे वि ॥८७॥ कंबलरयण विनाणि जाणि जग-उत्तम चंगिम(२४, नरवर पिक्खणि जाइ माइ पुत्तह पभण[इ] इम, आवि इक्क-खण१२५ पुत्त पत्त सेणिय तुह मंदिरि, लेउ क्रियाणउं माइ ठाइ ठांवउ जिणि तिणि१२६ परि, न क्रयाणउं कुइ एउ१२७ सामि तुम्ह सालिभद्द इय वयण सुणि, भववासविरत्त चरित्त लिई छंडि सुक्ख सहू कणय मणि. २८ दुक्करमुद्धोसकर, अवंतिसुकुमालमहरिसीचरियं । अप्पावि नाम तह तज्जइत्ति, अच्छेरयं एयं ॥४८॥ अवयंतिसुकुमाल नयरि उज्जेणि पसिद्धउ, नलिणीगुलमविचार सुणव(वि) तक्खणि पडिबुद्धउ, अज्जसुहत्थि मुर्णिदहत्थि वय लेवि१२८ मसाणिर्हि, का[उ]सगि रहिउ सीयालि खद्ध२९ मण लग्गु९३० विमाणिहिं, सुह झाणि ठाणि तिणि सुर हूउ रमणि बत्रीसे व्रत लीउ, तसु नंदणि तिणि थानकि पछइ महाकाल देउल कीउ. २९ सीसावेढेण सिरम्मि, वेढिए निग्गयाणि अच्छीणि। मेयज्जस्स भगवओ, न य सो मणसा वि परिकुविओ ॥११॥ रायग्गिहि मेयज्ज भज्ज नव वर विवहारिउ, पुव्व-मित्त सुरि बोहि दिक्ख दुक्खिहि लेवारिउ३९, विहरंतउ तिहिं पत्त दुट्ठ सोनारह-मंदिरि, क्रौंचि चणय जव खद्ध बहु बद्धउ तिणि तस सिरि, दढ घाइ दिट्ठि दुइ नीकलीय ढलीय धरणि निच्चलु भयउ, तस पंखि-प्राण रक्षा करी धरी ध्यान सिद्धिर्हि गयउ. ३० सीहगिरिसुसीसाणं, भदं गुरुवयणसद्दहंताणं । वयरो किर दाही वायणत्ति न विकोवियं वयणं ॥१३॥ धणगिरि-घरणि सुनंद-ऊयरि जायु जाईसर, छम्मासिउ पिउ पासि वयर संपत्तउ वयधर, तस समीवि१३२ मुणि-कज्जि गुरिहि वायण१३३ अणुजाणीय३५,
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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