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________________ सप्टेम्बर - २०१८ ९७ सहविअवत्थ ९३ सुवत्थ आणि वेसा करि मिल्हइ, चंपेवि१४ खालि पडिबोहिउ सुगुरुपासि पत्तउ भणइ, निंदीइ लोकि सो गुरुवयण अप्पमाण रह जो कुणइ. २४ जइ दुक्कर दुक्करकारओ त्ति, भणिओ जहडिओ साहू । तो कीस अज्जसंभूअ-विजयसीसेहिं नवि खमिअं॥६६॥ गुणिअण सरिसउ गव्व म करि मूरख मच्छर १५ वसि, न हु निव्वडइ समत्थ जइवि गद्दह गयमक्खसि,११६ सुहड भणी संभूतविजय 'दुक्कर'ति पसंसिय १७, तसु सीसिहिं पुण थूलभद्र-मुणिवर-गुण खिसिय १८, तिणि कम्मि कोसावसिहिं नडिउ चडिउ हत्थि दुज्जण तणइ, अपकित्ति अलिय १९ १२०अज्जवि अजस महिमंडलमाहि रूणझणइ. २५ अइसुट्टिओ त्ति गुणसमुइओ त्ति, जो न सहइ जइपसंसं । सो परिहाइ परभवे, जहा महापीढ पीढ रिसी ॥६८॥ म करउ मच्छर माण जाण सरिसउ जगि कोई, पूरउ-पुण्य-प्रभावि, पावि पुण हीणउ होई, बाहु सुबाहु सुसाहु सुणवि गुण किउ मनि मच्छर, तिणि हीणत्तण२१ पत्त पीढ महपीढिहिं दुहकर २२, पर जम्मि बंभि सुंदरि सुधूय महिला महियलि मुणउ, सिरि रिसह भरह बाहुबलिहिं त्रिहु प्रभाव पुन्नह तणउ. २६ सर्व्हि वाससहस्सा, तिसत्तखुत्तोदएण धोएण। अणुचिन्नं तामलिणा, अण्णाणतवुत्ति अप्पफलो ॥८१॥ अणगल-नीर-विपार सुहम जीवाइ अरक्खण, . इण कारणि बहु कट्ठ अप्प फल कहइं वियक्खण१२३, छट्टिहिं सट्टि सहस्स वरिस तप तपइ अज्ञानिहिं, पारण पुण इकवीस वार जल-धोइय [धोय]धानिहिं, सो तामलिरिसि एरिस तपी मास दुन्नि अणसणि स(म?)रिउ, उप्पन्नई ईसाणि तिणि मुक्खमग्ग नहु अणुसरिउ. २७ मणिकणगरयणधणपूरिअम्मि, भवणंमि सालिभद्दो वि। अन्नो किर मज्झ वि सामिओत्ति, जाओ विगयकामो ॥८६॥
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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