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अनुसन्धान-७५ (२)
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विज्जाहरीहिं सहरिसं, नरिंददुहिआहिं अहमहंतीहिं । जे पत्थज्जइ तइआ, वसुदेवो तं तवस्स फलं ॥५४॥ नंदिसेण दोहग्ग" नडिउ निद्धण बंभण-सुय, भवविरत्त चारित्त गहवि तव तवइ अच्चब्भुय, वेयावच्च पसंस इंद किय कसि हिं पहुत्तउ, बंधिय अंति नियाण सग्गि सत्तमि सो पत्तउ, दसमउ दसार नरखयर-धूय सहस बहुत्तरि रमणि- वर, सोहग्ग-सार वसुदेव हूय हरिवंस पयासकर. २१ सपरक्कमराउलवाइएण, सीसे पलीविए निवए । गयसुकुमालेण खमा, तहा कया जह सिवं पत्तो ॥ ५५ ॥ पत्त दिवसि चारित्र कण्ह" लहु बंधव रयणिहिं, गयसुकमाल मसाणि रहिउ कासगि जिण - वयणिहिं, बंभणि बंधवि पालि सीसि वइसानर दिद्धउ, सिरह सरिस दुक्कम्म दहवि मुणि तक्खणि सिद्धउ, तस दुट्ठ- दुरिय-भार भूरिय१०१ - उयर फुट्ट नरयग्गमह, जिम सहिउं तेणितिम संसहु २ लहु लच्छिसु परक्कमह. २२ ते धन्ना ते साहू, तेर्सि नमो जे अकज्जपडिविरया । धीरा वयमसिहारं, चरंति जह थूलिभद्द मुणी ॥५९॥ थूलभद्र गुरुवयणि कोसा - वेसाहरि०३ पत्तउ, चित्रसाली चउमासि रहिउ रस - विगइ निरत्त १०४, पुव्व वेर संभारि समर समरंगणि जित्तउ ०५, जिणसासणि जयवंत सुहड १०६ सुपरिहिं" सुविदित्तउ, ' खर-खग्ग-धार सिरि संचरिउ सहिउ सीह जिम इक्कमन, जे सील-भार दुद्ध[र] धरइ ते सुसाहु ते धन्न धन. २३ जो कुइ अप्पमाणं, गुरुवयणं जो न लहेइ उवएसं । सो पच्छा तह सोयइ, उवकोसघरे जह तवस्सी ॥ ६१ ॥ तवसी इक उपकोसगेहि गिउ गुरु अवमन्निय १०९, थूलभद्र मुणि सरिसु करिसु तव इम मनि मन्निय११०, अत्थलाभ सुणि वयण रयणकंबल भणि ११ चल्लइ ११२,
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