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सप्टेम्बर - २०१८
भुक्ख दुक्ख बहु सहइ लहइ आहार न सुद्धउ, मोदक्क सीहकेसर-सहिय कर्म कूदि(टि) केवल कलिउ, संपत्त-सिद्धि-संपत्ति सुहतपतरू इम पुष्पिअ फलिउ. १७ जंतेहिं पीलिया वि हु, खंदगसीसा न चेव परिकुविआ । विइअपरमत्थसारा, खमंति जे पंडिआ हुंति ॥४२॥ हुंति- जि पंडिय-पवर अवर दुव्वयणि न कुप्पई, खंदगसूरि-सुसीस जेम आयार न लुप्पई९, पालय -कय-उवसग्ग लग्ग मण तीहं सज्झाणिहिं, जंत्रिहिं २ जीविय चत्त पत्त सवि सिद्धह-ठाणिहिं, सो अग्गिदड४ नरगिहिं गयउ वाडव५ भव भमिसिइ६ घणउ, भो भविय भावि इम कोह-अरि खंति-खग्गि हेला हणउ. १८ न कुलं इत्थ पहाणं, हरिएसबलस्स किं कुलं आसि । आकंपिआ तवेणं, सुरा वि जं पज्जुवासंति ॥४४॥ पुज्जई सुरवर-पाय राय नितु नमई निरग्गल, तपि सिज्झइं नव निद्धि सिद्धि सवि “सरई समग्गल,९ तपह लेस हरिएसबलह जिम जगि जस होवइ, न कुलक्रम न प्रसिद्धि रिद्धि नवि तसु कुइ° जोवइ, तिदुक्ख जक्ख पयतलि लुलई बहु बंभण बोहिय बलिहि, कोसलिय-धूय परिणी त्तिजीय भजीय सुद्धि अछिय कुलिहिं. १९ कोडीसएहिं धणसंचयस्स, गुणसुभरियाए कण्णाए। नवि लद्धो वयररिसी, अलोभया एस साहूणं ॥४८॥ ए सुसाहु-आचारसार जइ लोभि न डुल्लई१२, वयरसामि संपत्त नयरि-पाडल३ समतुल्लई, सुणवि तासु गुणवत्त रत्त धणसिट्ठिकुमारी, कणय-कोडि-संजुत्त पत्त सा सइंवरनारी, गुरुरयण-वयण पडिबोह सुणि सुद्ध सील संजमि रही, जिम तेणि मुक्क तिम मुक्कीइ रमणि रयणकोडिहिं सही. २० किं आसि नंदिसेणस्स, कुलं जं हरिकुलस्स विउलस्स । आसी पियामहो सुचरिएण, वसुदेवनामुत्ति ॥५३॥