________________
९४
अनुसन्धान- ७५ (२)
पडिवज्जिऊण दोसे, नियए सम्मं च पायपडियाए । तो कर मिगावईए, उप्पन्नं केवलं नाणं ॥३४॥ कोसंबी ससि सूर वीर वंदई स - विमाणय ३, मिग्गवइ४ महासत्ति जंत" वंदण नवि जाणइ, निसि एकल्ली" जाइ पाइ लग्गेवि " खमावई, पडिवज्जइ तियदोस रोस मिल्हइ" मिल्हावई ", सुह भावि विसुद्ध केवल भयु भुजग विनाणि हि जाणियउ, जिम पवत्तणी स भवपार गय विनय अंगि तिम आणियउ. ६१ १४ संतेवि कोवि उज्झइ, कोवि असंते वि अहिलसइ भोए । चयइ परपच्चएण वि, पभवो दट्ठूण जह जंबू ॥३७॥ - विलासभवणि पडिबोहइ भज्जह,
प्रभव पंच-सय-जुत्त पत्त तर्हि पर धण कज्जह, कण नवाणूं कोडि छोडि व्रत वंछइ सुहमणि, तं पिक्खवि तसु वयणि सयल पडिबुज्झइ तक्खणि, सगवीस - अधिक सय - पंचसिउं रायग्गिहि संजम लय, ६५ सो दूसमि पंचम गणहरए सीस चरिम केवलि भयउ. १५ दीसंति परमघोरा वि, पवरधम्मप्पभावपडिबुद्धा । जह सो चिलाइ पुत्त, पडिबुद्धो सुंसुमाणाए ॥३८॥ सुंम - गिहिं रत्तपत्त रायग्गिहनयरिहिं, दास-चिलाईपुत्त जुत्त धणघरि बहु चोरिहिं, कुंरि करीय करि नट्ठ दुट्ठ अडवि" हि अणुसरिउ, वाह पत्तउ पुट्ठि सिट्ठिपुत्तिहिं परिवरिउ,
सो रिक्षि दिक्षि" त्रिह अक्षरिहिं खग्ग सीस छंडइ करम, कीडियहं कड्डि अढई दिवसि सहस्सारि दीसइ परम. १६ पुप्फिअफलिए तह पिउघरंमि, तण्हाछुहासमणुबद्धा । ढंढेण तहा विसढा, विसढा जह सफलया जाया ॥३९॥ जायवपुत्त जिणिंदसीस ढंढण गुण-जुग्गह",
अंतराय जाणिइ लेइ निय-लद्धि अभिग्गह, ७५
बारवई छम्मास (अट्ठमास ? ) भमइ गुणि रमइ समिद्धउ, ७६