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________________ सप्टेम्बर - २०१८ थोवेण वि सप्पुरिसा, सणंकुमारुव्व केइ बुझंति । देहे खणपरिहाणी, जं किर देवेहिं से कहियं ॥२८॥ कहिय इंदि अति रूप सुणिय सुर बंभणवेसिहि, पुहवि-पत्त मज्जणइ५० रूप पिक्खई सुविसेसिहि, कीया सिणगार ४ सणंकुमार नरनाह निरंतर४२, हक्कारइ अत्थाणि४ जाणि आविय देसंतर खणि देहि हाणि इम वयण सुणि रज्ज छंडि संजम ग्रहिउ, सय सत्त वरिस चारित्तधर सहइ रोग लद्धिहिं सहिउ. १० उवएससहस्सेहिं वि, बोहिज्जंतो न बुज्झई कोइ। जह बंभदत्तराया, उदाइनिवमारओ चेव ॥३१॥ करइ रज्ज कंपिल्लनयरि छ क्खंड नरेसर, जाईसमरणि जाणि पुव्व-भव-बंधव मुणिवर, बोहइ बहु उवएस-सहसि५ पुण तोइ न बुज्झइ, भोग भवंतरि बद्ध तिण विसयारसि मुज्झइ, सो बंभदत्त बंभणि कीउ अंध अधिक पातग करी, संपत्तउ सत्तम नरगि मुजि (सु जि) साधु पत्त सिद्धहं पुरी. ११ सेणियकुलि कोणियनरिंदसुय निवई५७ उदाईय८, पाडलिपुरि गुरुभत्त रत्त पोसइ सामाईय, खत्तियपुत्त---[असि उज्?] जाणि तिणि देसह कड्डिउ, उज्जेणि पज्जोय राय ओलगई.९ अणिठिउ९, इणि वयरि अवर अलहंत छल वरिस बार व्रत धारयु, तिणि दुठि तहवि अवसर लहवि२ निव उदाई निसि मारयु. १२ वुत्तूण वि जीवाणं, सुदुक्कराइंति पावचरिआई। भयवं जा सा सा सा, पच्चाएसो हु इणमो ते ॥३३॥ चंपापुरि सूंनार नारि-सय-पंचह-सामी, . सासिमत्त अहरत्ति गेह नवि छंडई५२ कामी, तिणि मारी इक नारि अवर नारिहिं सो मारीउ पढम भज्ज नररूपि विप्पकुलि सो पुण नारीउ, सय-पंच भज्ज जे चोर तस घरणि इकु सा नारि हूय, पहु वीरपासि पुच्छइ सु नर जा सा सा सा विप्प-धूय. १३
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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