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________________ सप्टेम्बर - २०१८ तिहुयण-गुरु सिरि वीर धीरपणि धम्म-धुरंधर, दास पेस-दुव्वयण सहइ घण° दुसह निरंतर, नर-तिरिय देव-उवसग्ग बहु जहर जग-गुरु जिणवर खमइ, तिम खमउ खंति अग्गलि करी जेम्म रिउ-दल नमइ. ३ भद्दो विणीअविणओ, पढमगणहरो समत्तसुयनाणी। जाणतो वि तमत्थं, विम्हिअहियओ सुणइ सव्वं ॥६॥ सव्व सुणइ जिण-वयण नयण उल्हासिहि गोयम, जाणइ जइवि सुयत्थर तहवि पुच्छइ पहु, कहु किम, भद्रक चित्त पवित्र [पवित्त] पढम गणहर सुयनाणी, न करइ गव्व अपुव्व करवि मनि मन्नइ वाणी, छंडीइ मान ज्ञानह तणउ विणउ'३ अंगि इम आणीइ, गुरुभत्ति कहवि नवि मिल्हीइ ग्रंथ कोडि जइ जाणीइ. ४ अणुगम्मइ भगवई, रायसुयज्जासहस्सर्विदेहि। तहवि न करेइ माणं, परिअच्छइ तं तहा नूणं ॥१३॥ दिणदिक्खिअस्स दमगस्स, अभिमुहा अज्जचंदणा अज्जा। नेच्छइ आसणगहणं, सो विणओ सव्वअज्जाणं ॥१४॥ वरिससयदिक्खियाए, अज्जाए अज्जदिक्खिओ साहू। अभिगमणवंदणनमंसणेण, विणएण सो पुज्जो ॥१५॥ दहिवाहण-निव-धूय वीर-जिण-पढम-पवत्तणि, चंदनबाल विसाल गुणिहिं गज्जइ गुहिरप्पणि५, अहनिसि रायकुंयारि सहस सेवइं पय भत्तिहि, जाणइ नाण६-निहाण माण पुण नाणइ चित्तिहि, दिणदिक्खिय देक्खिय आवतु द्रमक-साधु सा उठि करि, अभिगमण नमण वंदण विनय सुणइ वयण आनंदभरि. ५ संबाहणस्स रण्णो, तईआ वाणारसीए नयरीए । कन्नासहस्समहिअं, आसी किर रूववंतीणं ॥१७॥ तहवि असा रायसिरी, उल्लटुंती न ताइआ ताहिं । उअरहिएण एगेण, ताइआ अंगवीरेण ॥१८॥
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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