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________________ ९० करी छे तेथी १५मा शतकमां थया होवानुं सहेजे कल्पी शकाय . वडोदरानी सेन्ट्रल लायब्रेरी - ( प्राच्यविद्यामन्दिर ग्रन्थालय ) नी प्रतिनी फोटो नकल परथी आ सम्पादन करेल छे. प्रतमां मूल गाथानां प्रतीक मात्र छे. ते स्थाने आखी गाथा अमे लखी छे. प्रतनी नकल आपवा माटे प्राच्यविद्यामन्दिर - वडोदराना आभारी छीए. अर्हं ॥ श्रीवीतराग ॥ अनुसन्धान- ७५ (२) * नमिऊण जिणवरिंदे, इंदनरिंदच्चिए तिलोयगुरू । उवएसमालमिणमो, वुच्छामि गुरूवएसेणं ॥२॥ विजयनरिंद जिणिंद वीर - हत्थहिं वय लेविणु', धम्मदासगणि नामि गामि-नयरिहिं विहरई पुणु, नियपुत्तह रणसीहराय पडिबोहण सारिहिं, करई ए उवएसमाल जिणवयण - वियारिहिं सय पंच ब्याल गाहारयण मणिकरंड महियलि मुणउ, सुभाविसुद्ध सिद्धंत समसवि सुसाहु सावय सुणउ. १ वच्छरसभजिणो, छम्मासा वद्धमाण जिणचंदो । इअ विहरिआ निरसणा, जइज्ज एओवमाणेणं ॥ ३ ॥ रिसहनाह निर (रा) हार वरिस विहरिउ अपमत्तउ, वद्धमाण छम्मास करइ तप गुणिहिं निरुत्तर', अवर वि जिणवर दिक्ख लेवि तव तवई सुनिम्मल, तिणि कारण उपदेशमाला धुरि तप किय बहुफल, निय सत्ति सारि अणुसारि णित ए आदर अहनिसि करउ, भोभवि भावि जम्मण - मरण- दुह- समुद्र दुत्तर' तरउ. २ जड़ ता तिलोयनाहो, विसहइ बहुआई असरिसजणस्स । इअ जीअंतकराई, एस खमा सव्वसाहूणं ॥ ४ ॥ सव्व साहु तुम्हि सुणउ गणउ जग अप्प - समाणउ, कोह कहवि परिहरउ धरउ समरस सपराणउ,
SR No.520577
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages338
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size22 MB
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