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सप्टेम्बर - २०१८
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अने आकर्षणनो विषय बनी रह्यो.
तेमणे त्याग केम थाय ते शीखव्यु. दीक्षा अटले शुं ते दर्शाव्यु. चारित्र के संयम के साधुतानी चर्या केवी अघरी-आकरी होय अने छतां ते केटली सहजताथी आचरी शकाय ते पण बताव्यु. भूख्या-तरस्या रहीने आनन्दभेर जीववानी कळा ते तप कहेवाय ते पण तेमणे मौननी भाषामां समजाव्यु. अने छेल्ले, 'दान' अटले शं, अने मुनिने दान केवी रीते अने शेर्नु अपाय ते पण प्रयोगात्मक रीते देखाडी दीधुं.
__ ओक परिपूर्ण संस्कृतिनी संरचनानो ओ अन्तिम उपक्रम हतो, ओम कही शकाय; अने ओना प्रणेता हता दादा ऋषभदेव : बाबा आदम !
युगोना युगो सुधी वही गया आ संस्कृति-सर्जननी घटनाने. परन्तु ओ आदिपुरुष आपणी वच्चे आजे पण जाणे जीवे छे ! ज्यां ज्यां नजर करो, त्यां ओ आदिपुरुष आपणने देखाशे.
____ चाकडा उपर माटीनो पिंडो लगावीने भ्रमणक्रिया द्वारा घडा जेवा पात्रनुं निर्माण करता कोई कुम्भारने जोइओ ने आदिनाथ देखाय. रंधो मारतां सुथारने जुओ के पत्थरने घाट आपतां शिल्पीने जुओ, आपणने ओ आदिपुरुषनां सुभग दर्शन थशे. हळ साथे बे वृषभने जुतीने खेतरमा हळ हांकतां हांकतां भजन गाये जतां को क खेडूत तरफ नजर नाखशो के आदिपुरुषनी झलक सांपड्या विना नहि रहे. रे ! ज्यां ज्यां संस्कृति छे, त्यां त्यां मारो आदिपुरुष बेठेलो ज छे ! ।
सदेहे भले ओ न जडे, पण संस्कृति-देहे सदा विद्यमान, नित्यनूतन अने छतां परम पुरातन मे पुरुष काले हतो, आजे छे, अने आवतीकाले होवानो ज.
अने तेथी ज, युगयुगान्तरो वीत्या छताये ओ आदिपुरुष माटेनुं आकर्षण, आजे पण, अदम्य छे, असामान्य छे. आ आकर्षण आपणा जेवा अज्ञान माणसोने ज छे अq नथी. वेद अने पुराणोना प्रणेता ऋषि-मुनिओने पण अमनुं आकर्षण अQ ज - अजोड - रयुं छे. जुओ -
अमृतलाल नागर नामना श्रेष्ठ हिन्दी साहित्यकारे, पोतानी ओक पौराणिक