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सप्टेम्बर - २०१८
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संशोधन नामे प्रवृत्ति करवी, अने आ साधु-समुदाय कोई पद-प्रसिद्धिनी आकांक्षाथी वेगळो विद्याव्यासङ्ग चलावे ओ बे ध्रुवसमी वात छे. विद्या-उपासना माटे आ साधुजनोओ पोताना खपनी सरळ पद्धतिओ विकसावी हशे तेमां विद्यारसिकोने चोकस रस पडे. ओवो परिचय ओक लेखस्वरूपे शीलचन्द्रजी पासेथी आपणने मळे ओवी आशा सेववानुं आ टाणुं छे.
कोई विद्याप्रवृत्ति मजलना ओक पडावे आवीने थोभे, खुदने अवलोके, अने नवा खांभा क्यां खोडवा ओ विशे विचारे ओ अस्थाने नहीं गणाय. ओ अंगे एक-बे वात :
ओक तो, 'अनुसन्धान' ओक सामयिक छ, अने सामयिक प्रकृतिले ज अल्पजीवी होय छे. अनी जाळवणीनी चुस्त रसमो व्यक्तिगत अभ्यासीओ तो अनुसरी नथी ज शकता, आपणी घणीखरी ग्रन्थालय-व्यवस्थाओ पण ओवी जाळवणीनी काळजी दाखवती जोवा नथी मळती. 'अनुसन्धान'नी सामग्री बेशक दीर्घ अस्तित्व मागी ले ओवी छे; मात्र तेना सामयिकी स्वरूपने कारणे ज ओ सामग्री अल्पजीवनने हवाले जाय ओ वात न रुचे ओवी छे. आमांथी ओक सूचन अq उद्भवे के प्रगट थयेला पंचोतेर अङ्कोमांथी पसंदगीनी सामग्री ग्रन्थस्थ करवी. बीजं, 'अनुसन्धान', भावि स्वरूप ज ओक वार्षिक ग्रन्थ, राखवाथी सामयिकना अनिवार्य अल्पजीवनथी बची शकाय.
बीजी वात : सामयिकोने पुस्तकरूपे रजू करवानी टेकनोलोजी पण अत्यारे जबरदस्त परिवर्तन पामी रही छे. मुद्रित सामग्रीनी अक जग्याअथी बीजी जग्याओ हेरफेर ओ ओक. मोटी असुविधा रही छे. तेनो उकेल 'इन्टरनेट' रूपे लभ्य छे. अनेक सामयिको अने पुस्तको 'डीजीटल' स्वरूपे लभ्य बनतां होवाथी तेनो प्रसार अनेकगणो अने खूब सरळ बन्यो छे. 'अनुसन्धान' डीजीटल स्वरूपे इन्टरनेट पर मुकाय तो ओ जगतना कोईपण खूणे तत्क्षण पहोंची जाय - आ शक्यता रोमांचकारी तो लागे ज. पण, आ विद्यापरिपाक मात्र १५० नकलमां ज समाइ जाय ओ केयूँ ? अमांनी केटली नकल तेना खरा वाचको पासे पहोंचती हशे? परिस्थितिनी केवळ कल्पना ज करीओ : 'अनुसन्धान' डीजीटल स्वरूपे दुनियाने खूणेखूणे ज्यां जैन अभ्यासीओ हशे त्यां आपोआप पहोंचशे ! केटला बधा वाचको - मात्र अधिक ज नहीं, जे खरेखर जिज्ञासु हशे ओवा वाचको -