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________________ अनुसन्धान-७५(१) शुभकामना पूज्य शीलचन्द्रजी अने आदरणीय ने प्रिय नाना महाराजो, शुद्ध विद्याने वरेला साहित्यनुं प्रकाशन मे कोईपण समाजनी बुद्धिपरायणतानी ओक पाराशीशी गणाय. गुजराती भाषा भणेला भाषकोनी संख्यानी वृद्धिना प्रमाणमां गम्भीर ज्ञान-परिशीलननी प्रवृत्ति विकसी नथी - जथ्थानी दृष्टिले तेम गुणवत्ताना मापे पण. आ परिस्थिति आपणा विकासशील जमानानी ओक निराशाजनक विलक्षणता बनी छे. खेर, आवी परिस्थितिमां पण विद्याव्यासंगनी केटलीक ज्योत दीपी रही छे तेनो थोडो सन्तोष आपणे लई शकीले तेम छीओ. जैनपंथना साधुओनी विद्यापरम्परा गुजरातनुं गौरव छे. जे केटलीक दीवावाट आजे पण संकोराई रही छे तेमां 'अनुसन्धान'नुं स्थान अग्र छे. विजयशीलचन्द्रसूरिजी अने अमनुं नानुं ओवू तेजस्वी शिष्यमण्डळ जे विद्या-उपासना करी रह्यं छे ओ कोई मातबर विद्यासंस्थानुं गौरव मागे तेवू छे. ओ तरुण प्रतिभाओ कठण धर्माचरणनी साथोसाथ विद्याव्यासंग केळवे ओ ओमनी तीव्र ज्ञानपिपासा सूचवे छे. पण मध्यकालीन साहित्य-सामग्रीनां सम्पादनो करवां, तात्त्विक मुद्दाओ पर अभ्यासलेखो लखवा - ओ बधी विद्याप्रवृत्ति तो कोई साधनसज्ज विद्याधाममां बेसीने थई शके ओवी आपणी समजने अेक बाजु मूकवी पडे ओवी ओमनी पद्धति आश्चर्य पमाडे. सतत प्रयाण चालतां होय त्यारे सन्दर्भनां अनेक साधनो साथे न राखी शके ओवी परिस्थितिमां संशोधन-अभ्यासो चाले ए आजना जमानामां गळे न ऊतरे ओवी वात छे. प्रातःकाळे पदयात्रा शरु थाय अने नानां नानां मुकामो करता जाय, दिवस दरमियान पण अनेक रोजिंदी कामगीरीओ आ परिव्राजकोने रोकी राखे, सन्ध्या पछी वांचq-लखवू दुष्कर बने : आवी समय-संकडाशमां एमनो विद्याव्यासंग कई रीते चालतो हशे, सन्दर्भो तपासवा-चकासवानो, जातजातना कोशो जोवानो अमने अवकाश क्यारे मळतो हशे तेनुं आपणने आश्चर्य थाय. विपुल सामग्री चपटी वगाडतां लभ्य होय, वाचन-परिशीलन माटे बधी सुविधाओ हाजराहजूर होय ओवी परिस्थितिथी टेवायेला आपणा अभ्यासीओने आ नित्य-रझळतां साधु-साध्वीओओ पोते निर्मेला शोधन-कीमिया जाणवानी जिज्ञासा न थाय तो ज नवाई. सुविधाओनी भरमार वच्चे, संसारनी अनेक कामगीरीओमांथी मुक्ति पामीने
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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