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________________ तेने पुराणी हस्तप्रतिमां सचवायेला साचा पाठनुं प्रमाण पण जडी आवे. परन्तु, व्यवहारमा रूढ अने चलणी बनेला पाठने निरस्त करवो तथा तेना स्थाने शुद्ध, कर्ताने सम्मत पाठनी पुनः स्थापना करवी - ए आपणे मानी लईए एटलुं सहेलु तो नहि ज. रूढ पाठ माटेनी दलीलो आवी होय : "आ पाठ रहे तोय वांधो शं? अर्थ तो बेसी ज जाय छे! अमने तो आ ज पाठ जीभे चडी गयो छे, एमां हवे फेरफार केम थाय? वळी, आ पाठ पण को'क प्रतमां वृद्धोए जोयो हशे तो ज छपाव्यो हशे ने? तेमने मळेली प्रतनो पाठ ज साचो - एवं केम मानी लईए?" - अने रूढिजड लोको साथे काम पाडनाराने बराबर खबर छे के आवी दलीलो हमेशां अकाट्य होय छे, बहुजनने ते मान्य रहे छे, अने तेथी संशोधक द्वारा स्थापवामां आवता शुद्ध पाठने पण अशुद्ध मानवानुं वलण अकबंध रहे छे. साचो संशोधक आ बधांथी उभगे नहि, डरे के डगे नहि. तेनुं संशोधन काळनी कसोटीए खरुं ऊतरेलुं ज रहेवानुं छे; भले कोई तेनो अस्वीकार करे. __ शब्द-उत्खननना बीजा एक-बे उदाहरण जोईए. 'मांगरोळ' अने 'वलसाड' - बे गाम (के शहेर)नां नाम छे. बन्नेमांथी एकेयनो शब्दार्थ जडतो नथी; शो अर्थ थाय ते ज समजाय तेम नथी. सहेजे सवाल तो जागे के अर्थ विनानां नाम तो केम संभवे? थोडीक खणखोद करीए अने ध्वनिशास्त्र जेवा ओजारनी मदद लईए तो समजाय के 'मांगलोर'- 'मांगरोळ' थयुं छे, अने 'वडसाल', 'वलसाड' थयुं छे. __मुळे मंगलपुर, तेमांथी शब्दनुं पतन थतां थतां मंगलउर → मंगलोर → मांगलोर ने पछी ध्वनि-परिवर्तन थतां बन्युं 'मांगरोल'. संस्कृत शब्दनुं पतन थाय त्यारे जे सर्जाय ते अपभ्रंश! __ए ज रीते नगरना पादरे पुष्कल वडनां वृक्षो होवाने कारणे ओळख बनी 'वडसाल'. पछी लपसेली जीभे ध्वनि-परिवर्तन करी आप्यु : 'वलसाड'. आजे तो वल्हाड! तो, शब्दो- उत्खनन करतां आवडे तो तेमांथी पण शब्दना-पाठनावाचनाना मूळ स्वरूप के स्रोत सुधी जरूर पहोंची शकाय, एटलुं ज अहीं कथयितव्य छे. - शी.
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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