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अनुसन्धान- ७५ ( १ )
आपणो शुद्ध अने सात्त्विक ज्ञानवारसो जळवाई रहे ओ माटे यत्किंचित् प्रयासो करता रहेवा, अने से कार्य आजनी क्षण सुधी 'अनुसन्धान' द्वारा थतुं रह्युं छे.
तप
दान
जीवनना कोईने कोई क्षेत्रमां ज्यारे ज्यारे ओट आवे त्यारे अनी खोटने भरपाई करवा, फरी अ क्षेत्रने चेतनवंतुं बनाववा माटे परमात्मा कोईने कोई व्यक्तिने निमित्त बनावीने मोकली आपे छे. पछी से क्षेत्र धर्मनुं होय, सम्प्रदायोनुं होय, अध्यात्मनुं होय, साधनानुं होय, शिक्षणनुं होय, आयुर्वेद के आरोग्यनुं होय के पछी न्याय - कृषि - गोपालन - पर्यावरण सुरक्षा - वृक्षउछेर के वनीकरण अहिंसा जप लोकसेवा - लोकविद्याओ - साहित्य संगीत - कलाओ प्राणीकल्याण जळसंचय तथा अंधश्रद्धा, कुरूढिओ, कुरिवाजोनी नाबुदीनुं होय. केटलीक व्यक्तिओ अने केटलीक संस्थाओनुं सेवाकार्य समस्त मानवजातनी भविष्यनी पेढीओ माटे होय छे. ओमनी हयाती होय त्यां लगी ओमनी प्रवृत्तिओ विशे समाज पूरेपूरो सभान होतो नथी, ने ओमनां कार्योनुं कशुंये मूल्य नथी अंकातुं. पण सतनां बीजनुं वावेतर करनारा कोई मान-सन्मान - प्रतिष्ठाना अभिलाषी नथी होता. सतनां बीज तो पांगरे ज छे. ओना छोड वधीने कबीरवड सम थाय छे ने अनां मीठां फळ भविष्यनी पेढीओने जरूरथी चाखवा मळे छे.
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प्राचीन - मध्यकालीन साहित्यना अभ्यास अने संशोधननी उपेक्षाना समयमां पण आपणे त्यां गुजरातमां साहित्य, शिक्षण, संस्कार, सेवा, स्वाध्याय अने संशोधनमां कार्यरत अनेक संस्थाओ पोतपोतानी रीते काम करे छे. दरेकना उद्देशो, कार्यप्रणाली, अभिगमो विभिन्न होय अ स्वाभाविक छे, परन्तु भाषासाहित्यना अणिशुद्ध उत्कर्ष माटे मथनारी संस्थाओ अने सम्पूर्ण सात्त्विक व्यवहारो धरावनारी व्यक्तिओ ओछी थती जाय छे से हकीकत छे. साहित्य संशोधन क्षेत्रमां आजे अतिविकट कपरो काळ चाली रह्यो छे. जेना कलमनां लखाणो उपर आजलगी आपणे आंख मिचीने विश्वास मूकी शकता हता, अने गुरु सम आदरमान आपीने तज्ज्ञ, मूर्धन्य, सत्यशोधक - नीडर - स्पष्टवक्ता... जेवां जेवां विशेषणोथी नवाजीने वन्दन करता हता ओवा मुरब्बी संशोधको पण आजे धर्म-पंथ-सम्प्रदायज्ञाति-जाति-पक्ष-विचारधारा - प्रदेश - भाषानी कट्टरतामां पोतानी विश्वसनीयता खोई बेठा छे. ओवा समयमां पूज्य आचार्य श्री विजयसूर्योदयसूरिजी महाराज तथा पूज्य