________________
सप्टेम्बर - २०१८
आजना युगमां कइंक ओवा विषम काळमांथी आपणे सौ पसार थई रह्या छीओ के जीवनना तमाम क्षेत्रोमां जाणे के सार्वत्रिक घेरी उदासीनतानी छाया फरी वळी होय अर्बु लागे छे. खास करीने उच्च शिक्षण अने साहित्यना क्षेत्रमा तो निष्ठापूर्वकनी संशोधनवृत्तिनो अभाव अने अमांये मध्यकालीन जैन-जैनेतर संतसाहित्य, भक्तिसाहित्य, लोकसाहित्य, चारणी-बारोटी साहित्य, आदिवासी साहित्य, कंठस्थ परम्परामां के जूनी हस्तप्रतोमा सचवायेला लोकवाङ्मय, प्रशिष्टसाम्प्रदायिक जैन के जैनेतर साहित्य तथा जुदी जुदी धर्मान्तरित प्रजाओना गुजराती गद्य-पद्य साहित्य विशे नवी पेढीना विवेचको-अध्यापको तद्दन उपेक्षाभरी नजरे जोता होय एवी सतत प्रतीति थती होय अवा समये थोडंक पण सारु-प्रमाणभूत संशोधन-सम्पादन-प्रकाशन कोईपण संस्था के अभ्यासीना द्वारा थाय त्यारे अन्तरमां राजीपो थाय. आजे व्यक्ति व्यक्ति वच्चे अंतर वधतुं जाय छे. धर्म, जाति, प्रदेश, भाषा, कोम, सम्प्रदाय, पंथ, विचारधारा, साहित्यना विविध वाद के फांटाओ, राजकीय पक्षो, अम मानव समाज विखरातो रह्यो छे. अमां समये समये तिराडो मोटी ने मोटी थती जाय छे. जे साहित्यमां शिष्टता, विचारमण्डित सघनता, पारदर्शी प्रवाहिता, स्वाभाविकता, सादगी, सरळता, लाघव के मानवताभरी निष्ठा न होय ओवं साहित्य समाजमां पोतानो शुं संदेशो आपी शके? अने अनुं आयुष्य केटलुं होय? समग्र समाज उपर अनी असर क्याथी पडी शके ? वळी साहित्यने सर्वजनसुलभ बनावनारां साधनो-पुस्तको, सामयिको, वर्तमानपत्रो, रेडियो, टीवी, फिल्म, केसेट्स, सीडी, इन्टरनेट, जाहेर कार्यक्रमो वधतां ज रह्यां छे. अटले सत्त्वशील साहित्यनी साथे राजसी अने तामसी प्रकृतिना साहित्यनो पण बहोळो प्रचार-प्रसार थया करे छे. केटलाक अपवादोने बाद करतां स्थायी मूल्य धरावनारा, शाश्वत टकी शके ओवा, भविष्यना समस्त मानवजातना हितनो विचार करनारा अने जेने प्रशिष्ट के सात्त्विक कही शकीले अवा साहित्यनो अंशमात्र नजरे नथी चडतो, ओ जोईने कोईपण विचारशील मनुष्यने चिन्ता थाय. त्यारे ओक धर्मसंस्था द्वारा आवं जीवनघडतरमा उपयोगी थाय अर्बु साहित्य संशोधित-संकलित थईने प्रकाशित थाय छे ओ आश्वासन आपनारी घटना छे. आजना आ कारमा युगमां - ज्यारे जीवतरनां तमाम क्षेत्रो मात्र ने मात्र व्यावसायिक बनी रह्यां छे अने धर्म, शिक्षण, न्याय अने आरोग्य जेवां पूर्णतः पवित्र क्षेत्रोने पण लूणो लागी गयो छे त्यारे विचारशील मनुष्योनुं कर्तव्य अटलुं ज के आपणी भविष्यनी पेढी सुधी