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अनुसन्धान-७५(१)
आत्मनिरीक्षण अने अन्तर्मुख बनवानी निजानन्दनी प्रवृत्तिओ पण तेओ रसपूर्वक अने भावपूर्वक करता रह्या छे. (१) 'वीतरागस्तोत्र'नो हिन्दीमां भाववाही पद्यानुवाद, (२) 'भीनी क्षणोनो वैभव' अने (३) 'अवधू ! तुं ज थजे तुज चेलो' जेवी काव्यकृतिओमां तेमनी अन्तर्यात्रा प्रतिबिम्ब जोवा मळे छे.
आवी स्व-पर कल्याणनी साधना करी रहेला आत्मीय मित्रवर्य आचार्यश्री, स्वास्थ्य सुचारु रहे अने तेमना द्वारा जैन शासननुं गौरव वधारनारा कार्यो वधु ने वधु थता रहे तेवी हार्दिक मङ्गलकामना साथे अहीं ज अटकुं.
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