SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्टेम्बर - २०१८ ४५ अमारा बन्नेनुं कार्यक्षेत्र तथा जीवनशैली जुदी होवा छतां अमारी मैत्री पांच पांच दायकाओथी अकधारी टकी रही छे, तेनुं आश्चर्य अने आनन्द अमे बन्ने अनुभवी छीओ. तेनुं कारण अमारी बन्नेनी अपेक्षारहित अने आत्मीयताभरी लागणी छे एवं मने लागे छे. अमने दर वर्षे ज्यारे ज्यारे रुबरु मळवा- थाय छे त्यारे में तेमने अनेक प्रवृत्तिओमां व्यस्त जोया छे अने ज्यारे अमे अकला बेठा होईओ त्यारे मजाकमां हुं ओमने कहेतो होउं छु के, "शीलचन्द्र महाराज ! तमे तो ओक साथे सात घोडे चढेला छो !'' मजाकमां कहेली आ वातना पुरावा हुं नीचे प्रमाणे आपी शकुं. १. 'अनुसन्धान'- सम्पादन अने प्रकाशन. २. 'नन्दनवनकल्पतरु' नामना संस्कृत सामयिकनुं तेमना शिष्यो 'कीर्तित्रयी' द्वारा सर्जन, सम्पादन, प्रकाशन. ३. संस्कृत अने प्राकृत भाषाना महत्त्वपूर्ण प्राचीन ग्रन्थोनुं हस्तलिखित प्रतिओ उपरथी शुद्ध सम्पादन, संशोधन अने प्रकाशन. दा.त. 'योगदृष्टिसमुच्चय', 'बृहत्कल्पचूर्णि', 'भुवनसुन्दरीकथा', 'जीवसमासप्रकरण' - 'सटीक, 'महादेवबत्रीसी' जेवा अनेक ग्रन्थोने तेमना आवा कार्यना दृष्टान्तरूपे जणावी शकाय. ४. धंधुका पासे आवेल तगडी जैन तीर्थ, अमदावादमां हठीभाईनी वाडीमां आवेल 'शासनसम्राट भवन' जेवी समृद्ध संस्थाओना प्रेरक अने मार्गदर्शक तरीकेनी प्रवृत्तिओ. ५. शिष्योने अध्ययन, अध्यापननी प्रवृत्तिओमां सक्रिय रीते जोडेला राखवानो सतत पुरुषार्थ. ६. परिचयमां आवेला अनेक जैन संघो अने धर्मप्रेमी श्रावक-श्राविकाओना परिवारोने देव, गुरु अने धर्मनी उपासनामां रस लेता करवानी अने आगळ वधारवानी वात्सल्यभरी प्रवृत्तिओ. ७. उपरोक्त जाहेर जीवननी अनेकविध प्रवृत्तिओनी व्यस्तता वच्चे पण नियमित रीते समय काढीने पोतानी आत्मसाधना माटे प्रभुभक्ति, मंत्रजाप,
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy