________________
सप्टेम्बर २०१८
मारी नजरे - ' अनुसन्धान' सामयिक तथा तेना स्वप्नद्रष्टा, सर्जक, सम्पादक
- मुनिश्री कीर्तिचन्द्रविजयजी (बन्धुत्रिपुटी )
प्राकृत भाषा अने जैन साहित्यना अभ्यासपूर्ण संशोधननुं नोंधपात्र सामयिक 'अनुसन्धान' छेल्लां २५ वर्षथी प्रगट थई रह्युं छे अने तेनो ७५मो अङ्क आगामी दिवसोमां प्रगट करवानी तैयारी चाली रही छे त्यारे 'अनुसन्धान' सामयिकना अक जिज्ञासु वाचक तरीके आ विशिष्ट सामयिक अने तेना कुशळ संयोजक अने विद्वान सम्पादक प्रत्येनी मारी हृदयनी लागणी संक्षेपमां, शब्दो द्वारा अहीं व्यक्त करवा जई रह्यो छं. 'अनुसन्धान' वांचवानो मारो रस वर्षोथी जळवाई रह्यो छे तेनुं मुख्य कारण तेनां सम्पादकीय लखाणो अने तेमां प्रगट थती सत्यशोधक वृत्ति साधेनी तटस्थ, निराग्रही अने समन्वययुक्त दृष्टि रही छे.
४१
प्राकृत भाषा अने जैन साहित्यनो व्याप छेल्ला अढी हजार वर्षथी केटलो विस्तरेलो छे ते विद्वानोथी अजाण्युं नथी. भारतना जैन ज्ञानभण्डारोमां सचवायेली लाखो हस्तलिखित प्रतिओ तेनो प्रत्यक्ष पुरावो हे. आगमसाहित्ययी मांडीने कथासाहित्य सुधीना विविध विषयो उपर छेल्ला अढी हजार वर्षमां शब्दबद्ध थयेला हजारो ग्रन्थोनो परिचय 'जैन साहित्य का बृहद् इतिहास' भाग १ थी ७ तथा 'जैन गूर्जर कविओ'नी नवी आवृत्तिना भाग १ थी १० जेवा ग्रन्थो जोवाथी थई शके छे.
हस्तलिखित ग्रन्थभण्डारोमां शताब्दीओ जूनी ताडपत्रीय तथा काश्मीरी कागळनी अप्रगट अने दुर्लभ प्रतोने शोधी शोधीने तेनुं सुवाच्य लेखन तथा शुद्ध पाठोनुं संकलन-सम्पादन करीने ग्रन्थ अने ग्रन्थकार विषेनी अभ्यासपूर्ण प्रस्तावनाओ तथा महत्त्वनी माहिती पूरी पाडता अनेक परिशिष्टो सार्थेनुं तेनुं व्यवस्थित प्रकाशन करवानुं कार्य छेल्ला सो-दोढसो वर्षथी देश-विदेशना विद्वानो द्वारा थतुं आव्युं छे. गई शताब्दीमां 'कल्पसूत्र' जेवा जैन आगमग्रन्थोनुं तथा ‘समराइच्चकहा’ जेवा महाकाय ग्रन्थोनुं सर्वप्रथम सम्पादन अने प्रकाशन करनार जर्मन विद्वान हर्मन जेकोबीनुं नाम आ क्षेत्रे खूब जाणीतुं छे. तेम भारतमां आजथी ओक सो वर्ष