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________________ सप्टेम्बर - २०१८ ३७ पत्रमा गुरुजीना सहवर्ती मुनिवृन्दनी नामावलि तेमज पत्रलेखक शिष्यना सहवर्ती मुनिवृन्दनी नामावलि साधुपट्टावलिने संशोधित करवामां अेक महत्त्वनो आधारस्रोत बनी शके. साधुभगवन्तोनी चातुर्मासिक स्थिरतानां स्थान-समयना पुरावा तेम ज कया धर्मग्रन्थो उपर व्याख्यानो अपायां तेनी माहिती तथा केटलाक साधुभगवंतोनां मातापितानां नामो पण अहीं प्राप्त थाय छे. श्रीसंघे करेली विज्ञप्तिमां श्रावक-श्राविकाओनां नामो तत्कालीन संघना माळखा उपर प्रकाश पाडी शके. १५मा शतकना श्रीमुनिसुन्दरसूरिजीना 'चैत्यषट्कबन्धचित्ररूप श्रीजिनस्तवनावलि'मां चैत्योनां अंगवार स्थापत्यनी जाणकारी मळे छे. पाटणना पंचासरा पार्श्वनाथ चैत्यमां श्रीशीलगुणसूरिजी अने वनराज चावडानी प्रतिमाओना चित्रालेखननो उल्लेख तत्काले ओ प्रतिमाओनी मोजुदगीनो पुरावो छे. त्यारे गुजरात माटे 'गुर्जरावती' शब्दप्रयोग थयेलो अहीं जाणी शकाय छे. अत्यारे केटलांक नगरो जे नामथी ओळखाय छे ते तत्काले कया नामे ओळखातां तेना पुरावा अहीं मळे छे. ओक पत्रमा गुरु माटे 'खांवन' (खाविंद) प्रयोग थयेलो छे. उपा. यशोविजयजीनो पत्र अमनी स्वाध्यायप्रवृत्तिनो निर्देशक छे; तो साथे अमने विरोधीओना कावादावाना अने हेरानगतिना भोग बनवू पडेलुं ओनो संकेत ओमना ज पत्रमांथी प्राप्त थाय छे. श्रीविजयदेवेन्द्रसरिने माणिभद्र साक्षात् होवानो उल्लेख ओक पत्रमा थयो छे. जोधपुरथी लखायेलो ओक पत्र सचित्र छे. अमां व्याख्यान समये मुहपत्ति बांधेला साधुनुं चित्र तत्कालीन परम्परानुं सूचक छे. बीजापुर संघना ओक पत्रमा श्रीविजयप्रभसूरिनी दक्षिणनी विहारयात्रामा अमणे जुहारेला विविध पार्श्वनाथ तीर्थोनो उल्लेख मळे छे. लोकागच्छीय मुनि परमानन्दे सं. १८८४मां लखेला पत्रमा लोकागच्छ अहिपुर (नागपुर)मां प्रवो होवानो तेम ज ते समये जेसलमेरमां गजसिंह नामे राजा होवाना उल्लेखो छे. आ मुनिना सं. १८९०ना पत्रमा ते समये पतियालामां कर्मसिंह राजा होवानो उल्लेख छे. सं. १८५१मां सूरतना श्रीसंघे लखेला पत्रमा अचलगढमां सुवर्णवर्णा चोमुखजीना चैत्यनो उल्लेख छे, तेमज सूरतनां चैत्योनी नामावलि प्राप्त थाय छे. ___ मारवाडनी घाणेरावनगरीना अति विस्तृत वर्णनमा विविध विगतोने समावाई छे. राठोडोनुं राज्य, अजितसिंह राजा, अना कारभारीओ, ओमनां गोत्र, देवदेवीओनां स्थानको, जळाशयो, अनी धर्मनिष्ठ प्रजा, विविध व्यवसायीओ,
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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