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अनुसन्धान-७५(१)
अवतारनी कल्पना कराई छे. सूरतने गुजरातनां तमाम शहरोमां मुगट समान कह्यु छे. अना श्रावकोनुं गुणदर्शन अने जिनालयोनो परिचय विस्तारथी थयो छे. पत्र (६४/२२)मां दुहामां मारवाड प्रदेशना वर्णनथी शरु करी घाणेरावनुं चारणी छन्दोमां अति विस्तृत वर्णन करायुं छे. ओमां हाटक छन्दमां 'जैसो घाणेरा...'नी ध्रुवानां आवर्तनो वर्णनने सुगेय बनावे छे. गझलनो प्रयोग पण थयो छे. हाटक छन्दमां घाणेरावनी प्रजानुं ओक चित्र जुओ -
'वसहै व्यवहारी, बहु अधिकारी, जसधारी धनवंत, सुकृत आचारी, दुकृतनिवारी, सुविचारी सतवंत,
समकित-लयलीना, रंगरसभीना, ध्यावै जिनवरध्यान. जैसो घांणेरा...'
पत्र (६५/१४)मां मालवदेशनुं टीकात्मक हांसी करतुं वर्णन थयुं छे. पत्रलेखके त्यांना लोकोने गुणहीना, छीछरा, संकुचित मनना, अभिमानी कह्या छे. पण पछी वातने वाळी लेता होय अम कहे छे के त्यां मक्षीजी अने अवंती पार्श्वनाथ तीर्थ एनो मोटो गुण छे. पत्र (६५/१६)मां पाटणनगरीनुं वर्णन मारुगुर्जर भाषामां थयुं छे. अमां अरबी-फारसी शब्दोनी प्रचुरता जोवा मळे छे. जैन-जैनेतर देवस्थानो, अनी हाटश्रेणी, मलमल आदिना थता सोदा व. गझल स्वरूपे वर्णवी, पाटणना उपाश्रयो, वर्णन मोतीदाम छन्दमां थयुं छे, मेडता नगरना वर्णनमां केटलीक पंक्तिओ पाटणवर्णनने मळती आवे छे.
चातुर्मासिक आराधना अने पर्युषणपर्वनी धर्मक्रियाओने वर्णवती माहिती शिष्य पोताना गुरुने आ विज्ञप्तिपत्रोमां पाठवे छे. अमां श्रीसंघमां थयेली तपश्चर्या, व्याख्यानमां धर्मग्रन्थ, वाचन, पर्युषणमां कल्पसूत्र-वाचन, अमारिप्रवर्तन, चैत्यपरिपाटी, संघवात्सल्य व.नो समावेश थयो होय छे. सम्पादकश्रीओ ओक बाबत ओ नोंधी छे के पर्युषण अंगेनी माहितीमां त्रिशलामाताने आवेलां १४ सुपनोनां अवतरण-दर्शन अंगेनो उल्लेख आ विज्ञप्तिपत्रोमां क्यांये मळतो नथी. आ पण अक संशोधननो ज विषय गणाय.
विज्ञप्तिपत्रोना आ बधा विभागोनी अक महत्त्वनी उपलब्धि छे अमां प्रचुरपणे संघरायेली-सचवायेली तिहासिक विगतो. आ बधी विगतो अकठी करवा जतां तो ओम ज लागे जाणे अतीतमां धरबाई गयेलो मोटो खजानो हाथ आवी गयो.