________________
३२
अनुसन्धान- ७५ ( १ )
उपा. यशोविजयजीओ लखेला पत्र ( ६१ / १५) मां नेमिनाथनी स्तुतिमां ओवी कल्पना करी छे के नेमिनाथे पञ्चजन्य शंख फूंकतां समुद्र खळभळ्यो अने अनां उछळेलां मोजां साथे छीपोमांथी मोती नीकळीने विधाताना रथवाहक राजहंसना मुखमा जई पड्यां. विधाताओ आ सही लीधुं. उपाध्यायजीओ खरडारूप करेली बीजी ओक पद्यरचना (६१ / ४५) मां मङ्गलाचरण विभागमां प्रत्येक श्लोकमां 'पलायते पञ्चमुखः करेणोः' ओवी पादपूर्ति करता जई २० पद्योमां अनी समस्यापूर्ति करी छे. अ ज रीते नगरवर्णन विभागमां 'लोहितो जयति यामिनीपतिः' से पदनी पादपूर्ति करी पछीनां ८ पद्योमां अनी समस्यापूर्ति करी छे. आम समग्र रचना कवित्वचमत्कृतिवाळी बनी छे.
पं. नयविजयगणिओ लखेला पत्र ( ६१ / १२) मां कलात्मक वर्णरमणा करी छे. पत्रारम्भे थयेली वीरस्तवनाना १२ थी २५ सुधीना श्लोकोमां प्रत्येक श्लोकनी प्रथम पंक्तिमा जे वर्णानुक्रम राख्यो होय तेनाथी अ श्लोकनी बीजी पंक्ति अवळा वर्णानुक्रममां रचाई छे. अनां बहिरङ्गनुं कलाकौशल तो छे ज, साथे वर्ण्य विषय अने अनी भावाभिव्यक्तिनुं अन्तरङ्ग काव्यसौन्दर्य पण जळवायुं छे. आनुं ओक उदाहरण जुओ -
“वन्दे रवीनुन्नतकान्तिजातैः, पराजयन्तं द्विमतावमाक्षम् । क्षमावतामद्वितयं जरापं, तैर्जातिकान्तन्ननु वीरदेवम् ॥"
विज्ञप्तिपत्रोमां शार्दूलविक्रीडित, स्रग्धरा, वसन्ततिलका, शालिनी, उपजाति, दुहा, चोपाई, अनुष्टुप, सवैया, भुजङ्गी, पद्धडी, अमृतध्वनि, मोतीदाम, त्रिभङ्गी, चन्द्रायणी, छप्पय, कुंडळिया व. छन्दो प्रयोजाया छे. उपरान्त विविध रागोवाळी देशीओमां ढाळो प्रयोजाई छे. आवी ढाळोमां 'जी रे मारे', 'रे लोल', 'जी हो' जेवां लटकणियां 'मनमोहना रे लोल' अने 'असो घाणेरां' जेवी ध्रुवाओनां आवर्तनो ढाळोना गानने संवर्धक बने छे. गझल, स्वाध्याय (सज्झाय) अने गूढा (समस्याप्रधान दुहा) पण छे.
अनेक विज्ञप्तिपत्रोमा चारणी छटावाळा छन्दोमां पद्यरचना थई छे. जेम के पद्धडी छन्दमां 'झलहलै वदन जिम चंद जांन, कीरत जग पसरी किरण भांन', अमृतध्वनिमां 'तेजे पूर, मनमथ चूर, सील अनूर, कामित पूर, दालिद चूर' अने त्रिभङ्गी छन्दमां -