SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्टेम्बर - २०१८ ३१ अक अंशनी, जे अहीं (६४/१) प्रकाशित छे. अनुं नाम छे 'चैत्यषट्कबन्धचित्ररूप श्रीजिनस्तवावलि महाहद'. अमां पाटण- पंचासरा पार्श्वनाथ जिनालय, शत्रुञ्जयर्नु चैत्य, शान्तिनाथ चैत्य, गिरनार चैत्य, जीरापल्ली चैत्य अने महावीर जिनचैत्यनां चित्रबन्ध-पद्योमां ओ समय (१५मुं शतक)नां आ चैत्यो केवां हशे ओनो आलेख मळे छे. विशेषता ओ छे के अमां चैत्यस्थापत्यनां विविध अंगो जेवां के फरस, नीसरणी, सोपान, दण्ड, स्तम्भ वगेरेनां चित्रात्मक वर्णनो थयां छे. सम्पादकश्रीओ आ पत्रांशने विशेषाङ्कना घरेणा तरीके ओळखाव्यो छे. अ ज रीते उपा. उदयरत्नजीना दानरत्नसूरिजी परना पत्र (६५/२३)मां चार चित्रबन्ध काव्यो मळे छे. स्वस्तिकबन्ध, कमलबन्ध, अष्टारचक्रबन्ध अने शरावसंपुटबन्ध. आ चारेय चित्राकृतिओ अहीं अपायेली छे. कविप्रतिभा विना आवां चित्रबन्ध काव्यो शक्य नथी. श्रीविजयदेवसूरिने ओमना पट्टशिष्य श्रीविजयसिंहसूरिओ लखेला पत्र (६०/१)मां आरम्भे करेली वीरस्तुतिनां ४२ थी ६९ पद्यो तेमज गुरुगुणवर्णननां १५१ थी २७३ पद्यो बन्धचित्रोमां आलेखित छे, जेवां के त्रिशूल, शंख, हल, खड्ग, छत्र, कलश, स्वस्तिक, दलकमल, दर्पण वगेरे. ___पत्र (६४/७)मां जिनस्तुति करतां पत्रलेखके पार्श्वनाथना मस्तक पर नागनी सात फणाने मोक्षना प्रवेशद्वारे कषायादिनां लगावेलां ताळा खोलवानी कूचीओ कही छे. ___ श्रीमेघचन्द्रमुनिले लखेला पत्र (६१/९)मां कविकल्पना कराई छे के पार्श्वनाथप्रभुना चरण पर बेठेला शेषनागने प्रभुजी- चरित्र सांभरी आवतां मस्तक धुणाव्यु. तेथी समुद्रनां जलबिन्दुओ ऊछळीने आकाशमां तारलारूपे गोठवाया. 'क्षुब्धादुच्छलितास्तदा जलनिधेस्ते बिन्दवस्तारकाः ।' पं. दर्शनविजयगणिजे सादडीथी श्रीविजयप्रभसूरिजीने 'महासमुद्रदण्डकमय' पत्र (६१/३३) लख्यो छे. चार चरणमा ओक ज श्लोकनो ओ पत्र छे. प्रत्येक चरणमां ९९९ अक्षरो छे. प्रथम चरणमां राणकपुरना ऋषभदेवनुं अने बीजा चरणमां नलिनीगुल्म प्रासाद- सुरेख वर्णन छे. 'तमस्काण्डमुद्दण्डपाखण्डजाड्यं चयैश्चण्डरोचिः प्रचण्डप्रतापैः...' आवी शब्दानुप्रासखचित अने लयात्मकतायुक्त अक ज श्लोकवाळी आ कृति कवितुं अद्भुत काव्यकौशल प्रगट करे छे.
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy