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सप्टेम्बर - २०१८
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गुरु श्रीदेवसुन्दरसूरिजी पर संस्कृतमां लखेला विज्ञप्तिपत्र 'त्रिदशतरङ्गिणी'नो ओक अंश 'जिनस्तोत्ररत्नकोश' नामे तेम ज बीजो अंश 'गुर्वावली' नामे प्रकाशित छे. मुनिश्री जिनविजयजीओ 'विज्ञप्तिलेखसंग्रह'मां २७ कृतिओनुं सङ्कलन-सम्पादन कर्यु छे. वाचक जयसागरजीओ संस्कृतमां लखेल 'विज्ञप्तित्रिवेणी' स्वतन्त्र पुस्तक रूपे प्रकाशित छे.
'अनुसन्धान'ना १४९ विज्ञप्तिपत्रोमां संस्कृत भाषाना ९७ पत्रो छे. प्राकृतमां ३, मध्य-गुजरातीमा ३०, राजस्थानीमां १३, हिन्दीमां ५ अने षट्भाषिक १ छे. परन्तु भाषाना आ वर्गीकरणने चुस्त रीते समजवा- नथी. संस्कृत साथे पत्रना केटलाक अंशो प्राकृतमां, गुजराती साथे राजस्थानी-मारवाडी, हिन्दी साथे गुजराती अम मिश्रण थयुं होय.
पद्य-गद्यना माध्यमथी विचारतां १०७ विज्ञप्तिपत्रो पद्यमां, १९ गद्यमां अने २३ गद्य-पद्यमिश्रित छे. पद्यात्मक विज्ञप्तिपत्रोमां श्रीसंघनी विज्ञप्ति जेवा केटलाक अंशो गद्यमां जोवा मळे.
चातुर्मास दरमियान पर्वाधिराज पर्युषणनी आराधना पछी शिष्य पोताना गुरुजनने क्षमापना-वन्दना पाठवतो पत्र लखे ते विज्ञप्तिपत्र. संस्कृत भाषामां विज्ञप्तिपत्र लखवानी परम्परा १५मी सदीथी मांडीने छेक १९मी सदीना अन्त सुधी चालु रही छे. ओथी ज मोटा भागना पत्रो संस्कृतमां लखायेला उपलब्ध थया छे. साधुभगवंत गमे ते प्रदेशना होय पण विज्ञप्तिपत्र तो संस्कृतमां ज लखवानो होय ओवी ओक परिपाटी दृढ थई हती. ओटलुं ज नहीं, विज्ञप्तिपत्रना स्वरूपनो, विषयालेखन अने ओना अनुक्रमनो ओक ढांचो निर्माण पाम्यो हतो.
सौ प्रथम आरम्भे पत्रनुं मङ्गलाचरण करवामां आवे. अमां सामान्यतया ऋषभदेव, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ अने महावीरप्रभु से पांच उपकारी जिनेश्वरोनी स्तुति करवामां आवती. क्यारेक चोवीसेय तीर्थङ्करप्रभुनी स्तुति होय तो क्यारेक स्थानिक जिनालयना प्रभुनी पण स्तुति होय. ओ पछी पत्र ज्यां मोकलायो होय ओ नगरनुं वर्णन, पछीना क्रमे पत्र ज्यांथी मोकलायो होय अ नगरनुं वर्णन, चातुर्मास दरम्यान थयेलां धर्मकार्योनुं वर्णन, पर्युषणपर्वनी आराधना (अमारिप्रवर्तन, तपश्चर्या, कल्पवाचन, चैत्यपरिपाटी, संघवात्सल्य व.)नुं वर्णन, गुरुगुणस्तवना, गुरुनी चरणवन्दना, विज्ञप्ति (क्षमापना, वन्दनास्वीकार), सहवर्ती