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सप्टेम्बर - २०१८
आपणी मान्यताने हठाग्रहमां फेरवाती न अटकावे, तेवा संशोधनकार्यथी
अळगा रहे. • संशोधन एक यात्रा छे, शोधयात्रा अथवा ज्ञानयात्रा; व्यवसाय नहि, अने
कशुक रळी लेवानो धंधो तो नहीं ज. संशोधनना क्षेत्रमा रळी लेवा लायक वानां बे ज छे : सत्यनिष्ठा अने विश्वास. संशोधननो सम्बन्ध प्रबुद्धता साथे छे. प्रबुद्धता जेम जेम विकसती जाय तेम तेम स्वीकृत तथा परम्पराप्राप्त वातोना रहस्यार्थो स्फुट थई उघडता आवे; जेने लीधे परिमार्जन, स्पष्टीकरण, संवर्धन अने आवश्यक परिवर्तन थतां रहे. आघात जन्मावे तेवा संशोधननो अस्वीकार के तिरस्कार करे तेनुं नाम सम्प्रदाय. संशोधनना सत्यनो इन्कार ज धर्मने साम्प्रदायिक संकोच भणी
धकेली मूके छे. • पारम्परिक मान्यता साथे अन्धश्रद्धा जोडाई जाय अने संशोधन साथे
अविवेक जोडाई जाय त्यारे 'सत्य' ढंकाई जतुं होय छे अने 'असत्य'र्नु
चडी वागतुं रहे छे. • संशोधन एटले प्रवाहप्राप्त के परम्पराप्राप्त मान्यताओमां प्रवेशेल गरबडोनुं
निवारण, तो क्यारेक रूढ अने न मानवालायक गणाती बाबतोनुं समर्थन करवू ते पण संशोधन ज. संशोधननी अनिवार्य शरत छे सज्जता. संशोधक स्मृतिसज्ज, सन्दर्भसज्ज, भाषासज्ज, ज्ञानसज्ज, माहितीसज्ज, कल्पकता - कल्पनाथी सज्ज अने तर्कसज्ज पण होवो जोईए. शास्त्रना अभ्यासी अने संशोधकने शास्त्रनां, एटले के पूर्वसूरिओनां वचनो, प्रतिपादनो, मतो, विधानो, शब्दो माटे आग्रह होय - होई शके,
परंतु पोते विचारेली के स्वीकारेली बाबतो माटे तेने आग्रह न होय. • जो धर्म अने शास्त्रनां सत्य तथा तथ्य पामवां होय, प्रीछवां होय, तो
संशोधननी प्रक्रिया प्रत्ये के संशोधको प्रत्ये तिरस्कार राखवो पालववो