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________________ १० अनुसन्धान-७५(१) आवो, आपणे आचार्यश्रीनां 'संशोधन' विषयक केटलांक विचारमौक्तिको, पठन करी चिन्तन करीए : • संशोधन एक विज्ञान छे, ज्ञानना क्षेत्रनी एक वैज्ञानिक पद्धति छे. संशोधन ए सतत चालनारी प्रक्रिया छे, तेनो वास्तविक आधार स्वाध्याय छे. जेम सारुं प्रवचन स्वाध्याय विना न संभवे, तेम साचुं संशोधन पण स्वाध्याय विना न थई शके. स्वाध्याय एटले अध्ययन तेम ज अध्ययन करेल बाबतो विशे परिशीलन. एक सारा संशोधकमां समतोलता, निर्भयता, अनाग्रह अने सत्याग्रह, सहिष्णुता अने उदारता - आटलां वानां तो, ओछामां ओछां होवां जोईए. परम्परा श्रद्धागम्य, आज्ञाग्राह्य बाबत छे, ज्यारे संशोधन ते बुद्धिगम्य पदार्थ छे. संशोधन ए कोई प्राचीन-अर्वाचीन सर्जक । लेखकनी भूल शोधवा - सुधारवाना मिशन साथे करवानी प्रवृत्ति नथी. संशोधन तो, पूर्वग्रह - आग्रह, जडता-संकुचित मनोवलणो इत्यादिथी पर बनेला चित्तथी, पोताना ज्ञान अने समजणमां वृद्धि थाय, अने साथे साथे आडपेदाशरूपे पूर्वसूरिओना काममां के लेखनमां कोईकवार कशीक क्षति रही गई जणाय तो तेनुं शुद्धीकरण पण थई शके ए माटे थतुं उमदा अने आवश्यक ज्ञानकार्य छे. सम्मार्जन - संशोधन - सम्पादन करनार क्यारेय मनमानी रीते वर्ती शके नहि, पण पोतानी जागृत विवेकशीलता साथे ज ते काम करी शके, अने तो ज तेनुं संशोधन उपादेय बने. • शास्त्रसंशोधन ए मात्र शास्त्रमा ज शोधन करे एवं नहि, ए शोधकनी दृष्टिनुं पण शोधन-सम्मार्जन करे छे. • संशोधन ए सर्जनात्मक प्रवृत्ति के प्रक्रिया होवा छतां 'सर्जन'थी साव जुदी बाबत छे. संशोधन, आपणी विचारसरणीने वधु विशद, वधु निर्मळ न बनावे तथा
SR No.520576
Book TitleAnusandhan 2018 11 SrNo 75 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2018
Total Pages220
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size19 MB
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