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सप्टेम्बर
ध्यानमां लईने तेना प्रथम अंकथी ज जैन धर्म-दर्शन अने साहित्यनी संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश अने जूनी गुजराती मारु-गुर्जर, राजस्थाननी अने हिन्दी भाषाओमां रचायेली अने विविध ज्ञानभण्डारोमां संग्रहायेली के जे अद्यावधि अप्रकाशित रही छे तेवी महत्त्वपूर्ण कृतिओनी शोध- खोळ करी सम्पादित करवामां आवेली कृतिओ, संशोधन-लेखो, संशोधन करवा प्रेरे के अगाउनां थई गयेलां संशोधनो विशे पुनर्विचारणा करवा बाध्य करे के वधु संशोधन करवा प्रेरे तेवी नवीन विचारोत्तेजक टूंक नोंधो, गुजरात के गुजरात बहार जैनविद्याविषयक हाथ धरवामां आवेलां संशोधनकार्यो, ताजेतरना समयगाळामां प्रकाशित थयेलां के प्रकाशनाधीन पुस्तको, प्रसंगोचित अहेवालो / सटिप्पण समाचार, आवरणचित्रोनो परिचय, ऊहापोहने प्रोत्साहित करतां चर्चापत्रो, विहङ्गावलोकन वगेरे सामग्रीनो समावेश करवामां आवे छे. 'अनुसन्धान'नुं अवलोकन करतां तेमां प्रगट थयेली सामग्रीनी महत्ता अने तेनी खासयितो नीचे दर्शाव्या मुजब जोवा मळी छे.
२. सम्पादकीय लेखो
२०१८
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सामान्यतः कोई पण पत्र / पत्रिकाना तन्त्रीलेखो / सम्पादकीय लेखोमां सम्बन्धित पत्र / पत्रिकाए स्वीकारेला नीतिविषयक आदर्शो / सिद्धान्तोनुं प्रतिबिम्ब जोवा मळतुं होय छे. आ रीति-नीति अनुसार 'अनुसन्धान' नां 'निवेदनो'-'सम्पादकीय लेखो' पण तेना मूळभूत उद्देश - संशोधन - ने नजर समक्ष राखीने तेनी सैद्धान्तिक चर्चा, ऊहापोह करता कोलाहल करता नहि जोवा मळ्या छे. सम्पादक आचार्यश्रीए आ पत्रिकाना प्रारम्भिक केटलाक अङ्को बाद करतां तेना प्रत्येक अङ्कमां संशोधननी विभावना अने हार्द, संशोधनना गुणो अने तेनी (संशोधकनी) पासे अपेक्षित सज्जताओ, शोधकनी दृष्टिनुं संमार्जन, संशोधन एक ज्ञानकार्य / ज्ञानयात्रा, विवेक वगेरे आनुषंगिक बहुविध पासांओ विशे मर्मग्राही चर्चा करी छे, जेमां आचार्यश्रीनां अध्यनशीलता अने चिन्तनप्रज्ञानां सहज दर्शन थाय छे. तेमनां आ बधां लखाणोनुं संकलनसम्पादन थाय तो 'संशोधन' नी पायानी समज पूरी पाडती चिन्तनप्रेरक पुस्तिका विद्याजगतने सुलभ थई शके.
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